नगर बाजार / बस्ती – मुहर्रम मातम मनाने और धर्म की रक्षा करने वाले हजरत इमाम हुसैन की शहादत को याद करने का दिन है। मुहर्रम के महीने में मुसलमान शोक मनाते हैं और अपनी हर खुशी का त्याग कर देते हैं। हुसैन का मकसद खुद को मिटाकर भी इस्लाम और इंसानियत को जिंदा रखना था। यह धर्म युद्ध इतिहास के पन्नों पर हमेशा-हमेशा के लिए दर्ज हो गया। मुहर्रम कोई त्योहार नहीं बल्कि यह वह दिन है जो अधर्म पर धर्म की जीत का प्रतीक है।
क्यों और कैसे हुई कर्बला की जंग__
बताया जाता है कि यजीद जब शासक बना तो उसमें तमाम तरह के अवगुण मौजूद थे। वह चाहता था कि इमाम हुसैन उसके गद्दी पर बैठने की पुष्टि करें, लेकिन हजरत मुहम्मद के वारिसों ने उसे इस्लामी शासक मानने से साफ इनकार कर दिया था। ऐसे में इमाम हुसैन हमेशा के लिए मदीना छोड़कर अपने परिवार व कुछ चाहने वालों के साथ इराक जा रहे थे। इस्लाम की मान्यताओं के अनुसार हजरत इमाम हुसैन अपने परिवार और साथियों के साथ दो मोहर्रम को कर्बला पहुंचे थे। यजीद अपने सैन्य बल के दम पर हजरत इमाम हुसैन और उनके काफिले पर जुल्म कर रहा था। उस काफिले में उनके परिवार सहित कुल 72 लोग शामिल थे। यजीद ने उन सबके लिए 7 मुहर्रम को पानी की बंद कर दिया था। नौवें मोहर्रम की रात हुसैन ने अपने साथियों कहा कि, ‘यजीद की सेना बड़ी है और उसके पास एक से बढ़कर एक हथियार हैं। ऐसे में बचना मुश्किल दिखाई दे रहा है। मैं तुम्हें यहां से चले जाने की इजाजत देता हूं। ‘ लेकिन कोई हुसैन को छोड़कर नहीं गया और मुहर्रम की 10 वीं तारीख को यजीद की सेना ने हुसैन की काफिले पर हमला कर दिया। शाम होते – होते हुसैन और उनका काफिला शहीद हो गया। शहीद होने वालों में उनके छः महीने की उम्र के पुत्र हज़रत अली असग़र भी शामिल थे !
ताजियों को किया गया करबला मे दफन___
क्षेत्र के नगर बाजार, कलवारी,बहादुरपुर, गोटवा,पोखरा बाजार,पोखरनी,बिरऊपुर समेत तमाम ग्रामीण क्षेत्रों मे शुक्रवार की शाम को ताजियों को करबला मे दफन किया गया। वहीं कस्बे में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम इस मौके पर थाना प्रभारी नगर जनार्दन प्रसाद उपनिरीक्षक फखरे आलम खां, हेड कांस्टेबल ओम प्रकाश गुप्ता, पन्ने लाल शर्मा, विशाल मिश्र सहित अन्य पुलिस कर्मचारी व अधिकारी गढ़ रहे मौजूद।