लिख लिख के काग़ज़ों पे मिटाये गए हैं हम।

कैसे बतायें कितना सताए गए हैं हम,
लिख लिख के काग़ज़ों पे मिटाये गए हैं हम।

किसका अमल था राज़ है ये आज तक मगर,
रद्दे अमल में देखो जलाए गए हैं हम।

हसरत थी कि सजाते दिलों में उसी तरह,
जिस तरह म्यूज़ियम में सजाएं गये हैं हम।

दुनिया ये जान ले कि तबाही हमी से है,
ख़बरों की सुर्ख़ियों में लगाए गये हैं हम।

सुलतान-ए-हिन्द थे मगर क़िस्मत तो देखीए,
रंगून में ले जा के सुलाये गए हैं हम।

हिज़रत नही की इसलिये ऐ मादर-ए-वतन,
घुट घुट के जियें इतना डराये गये हैं हम।

हैरत ज़दा हैं देख के जेलें तलक नदीम,
जिस तरह बैरकों में सजाये गये हैं हम।

नदीम अब्बासी “नदीम”
गोरखपुर॥