अभी शायद किसी के दोस्त भी हम बन न पाएं, नए रिश्तों में जज़्बा हम पुराना ढूंढते हैं, माधव मधुकर ,,नूर,,

अनुराग लक्ष्य, 21 अगस्त

सलीम बस्तवी अज़ीज़ी

मुम्बई संवाददाता ।

इसमें कोई शक नहीं कि उर्दू ज़बान दुनिया की सबसे मीठी और शीरीं ज़बान है तभी तो मुंबई के अदबी गहवारों में आज की त्वारीख़ में नवीन जोशी नवा, नबील सैय्यद, पूनम विश्वकर्मा सहित अपनी खूबसूरत शायरी का मुज़ाहरा करने वाले माधव मधुकर नूर जैसे शायर आज एक कोहना मशक शायर की शक्ल में मुंबई की अदबी और साहित्यिक धरातल को मज़बूत करते नजर आ रहे हैं। साथ ही मुंबई के कवि सम्मेलनों और मुशायरों में शामिल होकर अपनी कामयाबी के परचम लहरा रहे हैं।

आज मुंबई के अदबी गहवारे से ऐसे ही एक कोहना मशक शायर से आपको रूबरू करा रहा हूँ, दुनिया ए अदब जिन्हें माधव मधुकर नूर के नाम से जानती और पहचानती है।

1/ परिंदे शाम होते ही ठिकाना ढूंढते हैं,

कि हम घर लौट आने का बहाना ढूंढते हैं।

2/ कोई आवाज़ दे अपना तो जाएं हम भी घर पर,

कि ग़ैरों में मूसलसल दोस्ताना ढूंढते हैं।

3/ बड़ी संजीदगी ज़ाहिद तेरे मकतब में होगी,

खुशी रिन्दों की महफ़िल में रोज़ाना ढूंढते हैं।

4/ कहीं कट जाए दिन और रात बस इतना है काफी,

कि ग़ुर्बत में कहां हम आशियाना ढूंढते हैं।

5/ अभी शायद किसी के दोस्त भी हम बन न पाएं,

नए रिश्तों में जज़्बा हम पुराना ढूंढते हैं।

6/ विसाल ए यार तो ऐ नूर अब मुमकिन नहीं है,

चलो यादों में ही गुज़रा ज़माना ढूंढते हैं।

….. पेशकश, सलीम बस्तवी अज़ीज़ी…..