जब अपने ही भावनाओं को समझ ना पाएँ

कई बार ज़िंदगी में हम दूसरों के लिए बहुत कुछ करते हैं – बिना किसी स्वार्थ के, सिर्फ इसलिए कि हमें ऐसा करना सही लगता है। हमारी सरलता, हमारी सच्चाई, और हमारी देने की भावना… ये सब हमें एक अलग इंसान बनाते हैं। लेकिन दुख की बात यह है कि हर कोई इन भावनाओं को समझ नहीं पाता।

जब आप बिना अपेक्षा के किसी के लिए कुछ करते हैं, तो उम्मीद यही होती है कि कम से कम आपकी भावना की कद्र की जाएगी। पर होता इसके उलट है – आपकी नीयत पर सवाल उठते हैं, आपकी अच्छाई को कमजोरी समझा जाता है, और आपके मौन को दोष की तरह देखा जाता है।

सबसे अधिक पीड़ा तब होती है जब ये बातें उन लोगों से मिलें, जिन्हें आप अपना कहते हैं। रिश्तों की दुनिया में सबसे अधिक चोट वहीं से लगती है, जहाँ आपने सबसे अधिक भरोसा किया हो।

छोटी सी ये जिंदगी हर बात को बार-बार समझाने और सफाई देने के लिए नहीं होती। कभी-कभी बस चुप रह जाना ही सबसे बड़ी प्रतिक्रिया होती है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि वह दर्द नहीं होता – दिल भी रोता है, और आँखें भी।

 

यह लेख उन सभी लोगों के लिए है जो इस दर्द से गुज़रे हैं। याद रखिए – आपकी अच्छाई आपकी ताकत है, न कि कमजोरी। दुनिया चाहे जितनी भी गलत समझे, अंत में वही सच्चाई जीतती है जो दिल से निकली हो।

जो आपको नहीं समझ सके, शायद वो आपकी ऊँचाई को नहीं माप सके। और जो आपको समझते हैं, उन्हें सफाई की ज़रूरत नहीं होती।

 

नेहा वार्ष्णेय

दुर्ग छत्तीसगढ़