,, कुछ ज़ख्म अभी तक भरे नहीं, बस ज़िंदा हूँ, बस ज़िंदा हूँ,,,, सलीम बस्तवी अज़ीज़ी,,,,,

,,, कुछ ज़ख्म अभी तक भरे नहीं, बस ज़िंदा हूँ, बस ज़िंदा हूँ,,,, सलीम बस्तवी अज़ीज़ी,,,,,
अनुराग लक्ष्य 9 जून
मुम्बई संवाददाता ।
,,कुछ ज़ख्म अभी तक भरे नहीं बस ज़िंदा हूँ बस ज़िंदा हूँ ,
ऐ वक्त मैं तुझसे शाम ओ सहर,
शर्मिन्दा हूँ शर्मिन्दा हूँ।
दुनिया मुझको क्या समझेगी इक तल्ख़ हक़ीक़त यह भी है,
कोई शजर नहीं कोई डगर नहीं मैं ऐसा एक परिंदा हूँ ।।,,
पिछले तीन दशक से हिन्दी साहित्य और उर्दू अदब की महफिलों में अपनी मयारी कलाम और दमदार आवाज़ के साथ जो आवाज़ आज देश की आर्थिक नगरी मुंबई में गूंज रही है, उस आवाज़ को पहचानने वाले शायर एवम् गीतकार सलीम बस्तवी अज़ीज़ी के नाम से जानते हैं और पहचानते हैं। जिनकी शायरी समाज का आईना हैं। सलीम बस्तवी अज़ीज़ी ने अपनी शायरी के ज़रिए हमेशा इंसानियत भाईचारगी और देश प्रेम को सामने रखा। और इसी लिए शायद इस बात को वोह पूरी शिद्दत से कह उठते हैं कि,
,,मैं शायर हूं मुहब्बत आम करना काम है मेरा,
जहाँ वालों मुझे देखो मुहब्बत नाम है मेरा ।
हर एक दिल हो मुहब्बत से यहाँ लबरेज़ इंसाँ का,
मिटे नफ़रत दिलों से बस यही पैग़ाम है मेरा ।।,,
,कभी ज़माने में ऐसा भी कोई यार मिले,
वफ़ा के नाम पर हर रोज़ उससे प्यार मिले ।
ग़रीब मैं सही मेरा शहर न ग़रीब रहे,
हमारे हाथों को कोई ऐसा कारोबार मिले ।।
तालियों की गड़गड़ाहट से दबा जाता हूँ मैं,
शेर कहता हूँ तो ग़ज़लों में समा जाता हूँ मैं ।
हमने माना मीर ओ ग़ालिब का नहीं है दौर यह
फ़िर भी शौक़ ओ ज़ौक से अब भी सुना जाता हूँ मैं ।।
मशकूर हूँ ममनून हूँ या रब्ब ए कायनात,
कतरे को आज तूने समन्दर बना दिया।
आगाज़ और अंजाम भी उस शख़्स के ही नाम,
मालिक ने जिसे इल्म का गौहर बना दिया ।।
मैं इस दुनिया में क्या हूँ यह किसी से कह नहीं सकता,
मगर जो सच है उसको भी कहे बिन रह नहीं सकता ।
मैं वोह दरवेश हूँ इस दौर का तेरी हुकूमत में,
कि जैसे बह रहा है तू मैं हरगिज़ बह नहीं सकता ।।
।।।।।। सलीम बस्तवी अज़ीज़ी ।।।।।।