बहुत ज़माने से तेरे नगर में रहता हूँ,

बहुत ज़माने से तेरे नगर में रहता हूँ,
तुझी को छोड़ के सब की नज़र में रहता हूँ।

बस एक तू है जो मेरी तरफ़ से ग़ाफ़िल है,
वगरना मैं तो सभी की ख़बर में रहता हूँ।

मैं संग बेटे,बहु के रहूं या गाँव चलूँ,
हर एक लम्हा इसी इक अधर में रहता हूं।

किसी कमीन की अफ़वाह है उड़ाइ हुइ,
अमीर-ए-शहर के ज़ेरे असर में रहता हूँ।

जरूरतों ने मुझे इस तरह से तोड़ दिया,
कि इस ज़ईफ़ी में भी मै सफ़र में रहता हूँ।

मैं कोइ शेर नहीं हूँ मगर मुझे देखा,
मैं जंगलात के ख़ौफ़-ओ-ख़तर में रहता हूँ।

फ़रेब इतने मिले हैं मुझे किनारों से,
नदीम इसलिये मैं तो भवर में रहता हूँ।

नदीम अब्बासी “नदीम”
गोरखपुर॥