उठती हूं रोज़ सुब्ह नए हौसलों के साथ ,, डॉक्टर यास्मीन मूमल,,,


अनुराग लक्ष्य, 12 अगस्त
मुम्बई संवाददाता ।
उत्तर प्रदेश के शहर मेरठ की रहने वाली डॉक्टर यास्मीन मूमल आज साहित्य और अदब की दुनिया का एक जाना पहचाना नाम है। राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी उपस्थिति से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देने वाली शाएरा की एक खास ग़ज़ल से आपको रूबरू कराया जा रहा है, उम्मीद करता हूं कि डॉक्टर यास्मीन मूमल की इस ghazal से आप ज़रूर मंत्रमुग्ध होंगे।
कुछ वास्ता नहीं था मिरा मसअलों के साथ।
फिर भी हयात गुज़री नए हादिसों के साथ।

है दुश्मनी क़दीम मेरी ज़लज़लों के साथ।
लड़ती हूँ रोज़ इनसे नए वलवलों के साथ।

आते हैं मेरी आँख में ग़म को निचोड़ने,
अब उंसियत सी हो गई इन बादलों के साथ।

दिन की थकन को ओढ़ के सोती हूँ रोज़ मैं,
उठती हूँ रोज़ सुब्ह नए हौसलों के साथ।

मजबूर ज़िन्दगी को समझ लेंगे आप भी,
कुछ पल गुज़ारिए तो कभी सायलों के साथ।

गहरे से गहरे ज़ख़्म भी भरते हैं प्यार से,
हमदर्दियां जताओ ज़रा घायलों के साथ।

अक़्लो फ़हम की गुफ़्तगू करने लगी हूँ मैं,
सोहबत जो इख़्तियार हुई आक़िलों के साथ।

क़ाबू में ख़ुद को रक्खा बहुत “यास्मीन” ने,
वरना वो आज उड़ती कई बादलों के साथ।