👁️ *ओ३म्* 👁️
📚 ईश्वरीय वाणी वेद 📚
*🍁वेदों में योगविद्या*🍁
*ओ३म् युञ्जान: प्रथमं मनस्तत्वाय सविता धियम्।*
*अग्नेज्योर्तिर्निवाच्य पृथिव्या अध्याभरत्*
।। यजुर्वेद ११.१।।
🪴 *पदार्थ* 🪴
🦚 युञ्जान: = योगाभ्यासी मानव 🦚 तत्वाय = तत्वज्ञान के लिए 🦚 प्रथमं मन : = जब अपने मन को पहिले परमात्मा से युक्त करते हैं तब 🦚 सविता = परमेश्वर उनकी 🦚 धियम्। = बुद्धि को अपनी कृपा से अपने में युक्त कर देता है। 🦚 अग्नेज्योर्तिर्निवाच्य = फिर वे परमेश्वर के प्रकाश को निश्चय करके 🦚 अध्याभरत् = यथावत धारण करते हैं। 🦚 पृथिव्या = पृथ्वी के बीच योगी का यही लक्षण है।
🐓 *मंत्र की मीमांसा*🐓
आदरणीय सुधी पाठक जन ! संसार में जितनी भी *सत्य विद्याएं* हैं वो सभी वेदों से ही निकली हैं। क्योंकि ईश्वरीय वाणी वेद ही सब *सत्य विद्याओं* की पुस्तक है। इसी प्रकार *योग भी सत्य विद्या* है उसका भी प्रादुर्भाव वेदों से ही हुआ है। वर्तमान में योग की सबसे प्रामाणिक पुस्तक है वह है महर्षि पतंजलि जी का *योग दर्शन* । उसके बाद हठयोग प्रदीपिका आदि अनेक मानवकृत योग की पुस्तकें हैं। महर्षि पतंजलि ने अपने योग दर्शन का आधार वेदों को ही माना है।
आश्चर्य इस बात का है कि आज जो योग जनमानस में *प्रचारित व प्रसारित* हो रहा है उसका महर्षि पतंजलि के योग दर्शन से दूर तक का कोई संबंध नहीं है। महर्षि पतंजलि के योग दर्शन के चार पाद हैं। *समाधिपाद,साधनपाद, विभूति पाद एवं कैवल्यपाद* आज जो योग प्रशिक्षक दिखाई दे रहे हैं उनमें से ९९% प्रशिक्षकों को 🏵️समाधिपाद, विभूति पाद व कैवल्यपाद🏵️की कुछ भी जानकारी नहीं है। अब बचा 🦩 साधन पाद 🦩 साधन पाद में अष्टांग योग का वर्णन है जिसके आठ अंग हैं। *यम,नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि*
इन आठ अंगों में से बीच के केवल दो अंग। *आसन व प्राणायाम* का प्रशिक्षण देने वाले अपने को *योग गुरु,योग शिक्षक* कहते हैं। प्राणायाम भी इनका महर्षि पतंजलि के प्राणायाम से मेल नहीं खाता है। उदाहरण के लिए *अंतरराष्ट्रीय योग दिवस २१जून* में जो प्राणायाम सिखाये जाते हैं उनमें मुख्य *भस्त्रिका, कपालभाति, बाह्य प्राणायाम, अनुलोम-विलोम,भ्रामरी* आदि हैं। इनमें केवल बाह्यप्राण महर्षि पतंजलि के योग दर्शन से चुराया गया है।अब जो बचे भस्त्रिका, कपालभाति, अनुलोम-विलोम आदि ये प्राणायाम हैं ही नहीं।इनका नाम है *श्वसन क्रियाएं* जिनका संबंध कुछ शारीरिक बीमारियों को ठीक करना। क्योंकि वर्तमान में लोग शारीरिक बीमारियों से उभर ही नहीं पा रहे हैं इसलिए वो इन श्वसन प्रकृयाओ को ही। *प्राणायाम और योग* मानकर चल रहे हैं और योग के नाम पर इनका ही प्रचार -प्रसार हो रहा है। वास्तविक *योग शास्त्र* के विद्वान आज भी मात्र एक (१%) लोग ही हैं।
🧘 *क्या है योग शास्त्र?* 🧘
यजुर्वेद अध्याय ११ मंत्र संख्या १ में *योग शास्त्र की सही व्याख्या* इस प्रकार किया है।
[१] योग का प्रथम चरण यह है कि योग साधक अपने मन को सर्वप्रथम ईश्वर से जोड़े।
[२] ईश्वर से मन को जोड़ने के लिए *यम और नियम* का आचरण जरूरी है जिसका प्रशिक्षण अंतरराष्ट्रीय योग दिवस २१जून के *प्रोटोकॉल* में है ही नहीं।
[३] अहिंसा ,सत्य अस्तेय, ब्रह्मचर्य व अपरिग्रह पांच यम हैं।
[४] शौच, संतोष,तप, स्वाध्याय, ईश्वर प्राणिधान पांच नियम हैं।
इन *यम-नियम* के बारे में सत्यार्थ प्रकाश में महर्षि दयानंद सरस्वती जी लिखते हैं जो। यम की उपेक्षा करके केवल नियम का पालन करते हैं वो कभी योगी हो ही नहीं सकते। मगर आज के योग प्रशिक्षक *यम-नियम* दोनों से अनभिज्ञ होकर केवल *योगासनों* को ही लेकर नारा देते हैं *करो -योग रहो निरोग* ।
[५] जब यम -नियम में साधक दक्ष होगा तब जाकर आसन व प्राणायाम में पुरुषार्थ करना उचित होगा।
वेद की इस पावन ऋचा में आगे लिखा है यम-नियम के पालन से शरीर व समाज की शुद्धि होगी। उसके बाद *आसन प्राणायाम प्रत्याहार* से मन की शुद्धि होगी तब जाकर योगी ईश्वर की विशेष कृपा से *धारणा व ध्यान* में सफल होकर योग के अंतिम चरण *समाधि* को प्राप्त होगा।
आदरणीय सज्जनों! हमने। *वेद व महर्षि पतंजलि के योग दर्शन* को प्रमाण मानकर ही आर्यावर्त साधना सदन पटेल नगर दशहराबाग बाराबंकी उत्तर प्रदेश ☎️ *7985414636*☎️ में *अंतरराष्ट्रीय योग दिवस* का समायोजन किया है।आपको भी अगर योगी बनना है तो 📚 ईश्वरीय वाणी वेद 📚 को अपने जीवन का लक्ष्य बनायें। इसके बाद आगे के लेख में हम *योग दर्शन* विस्तार से परिचर्चा करेंगे।आप सबको *अंतरराष्ट्रीय योग दिवस* की हार्दिक शुभकामनाएं 👏
आचार्य सुरेश जोशी
🐚 वैदिक प्रवक्ता 🐚