🌴 *ओ३म् *🌴
📚 ईश्वरीय वाणी वेद 📚
*त्वं हि नः॑ पि॒ता व॑सो॒ त्वं मा॒ता श॑तक्रतो ब॒भूवि॑थ।*
*अधा ते सु॒म्नमी॑महे* 🌾ऋ० ८/९८/११ 🌾
🕉️ *मंत्र का पदार्थ*🕉️
हे 🌼 वसो = वसाने हारे परमेश्वर! 🌼 त्वं हि = आप ही 🌼 न: = हम सबके 🌼 पिता = पालक तथा हे 🌼 शतक्रतो = विविध प्रज्ञा एवं कर्म विशिष्ट प्रभो! आप ही हमारे 🌼 माता = निर्माण कर्ता 🌼 वभूविथ = होते हैं। 🌼 अध = इसी कारण 🌼 ते = आप से। 🌼 सुम्न = सुख की 🌼 ईमहे = याचना करते हैं।
🪷 *मंत्र की मीमांसा*🪷
वेदों में परमात्मा को जीवात्मा के 🐧पिता और माता 🐧के रूप में स्मरण किया गया है। शरीर को जन्म देनेवाले संसारी 🌳माता-पिता🌳 चाहे कोई क्यों न हों, जीवात्मा को स्वकर्मानुसार मनुष्य के रूप में लानेवाला तो🕉️ परमात्मा 🕉️ही है। उसी वसु नामधारी परमात्मा का स्मरण कर उपासक उससे याचना करता हुआ कहता है – हे सबको बसानेवाले अथवा जड़-चेतन-जगत् में अपने सर्वव्यापकत्व के कारण बसे हुए वसो ! आप हमारे पालनकर्त्ता होने से 🍃पिता🍃 हैं। आपको हम अपनी 🍃माता 🍃कहकर भी पुकारते हैं, क्योंकि माता को निर्माता कहा जाता है और आपने हमारे 🌸शरीर, मन, बुद्धि🌸 आदि का निर्माण किया है। जन्मदायिनी माता की ही भाँति आपका वात्सल्य हमें सदा से प्राप्त है। आपका एक नाम 💐शतक्रतु💐भी है, क्योंकि आप अनन्त प्रज्ञान तथा अनन्त कर्मोंवाले हैं। हम आपकी 🍁स्तुति, प्रार्थना और उपासना🍁 वैदिक स्तोत्रों से करने के इच्छुक हैं। हम आपसे रक्षा की कामना करते हैं तथा सुख एवं आनन्द की प्राप्ति के लिए याचना करते हैं। वैदिक उपासना पद्धति में 🧘जीव और ईश्वर🧘 के जिन सम्बन्धों को स्वीकार किया गया है उनमें परमात्मा को जीव का पिता और साथ ही माता भी कहा है। यों तो वह प्रभु हमारा 🌱गुरु, राजा, न्यायाधीश, बंधु तथा मित्र🌱 भी है, किन्तु जिस प्रकार सन्तान के प्रति माता-पिता का अनन्य स्नेह और वात्सल्य होता है, वह हमें परमात्मा ही प्रदान करता है।
आचार्य सुरेश जोशी
🌴 वैदिक प्रवक्ता 🌴