ग़ज़ल
गर्दिशे वक़्त में क़रीब नहीं
कोई हमदम कोई हबीब नहीं
रोटी कपड़ा मकान दुनिया में
हर किसी शख्स को नसीब नहीं
जिसको माँ की दुआएँ हासिल हैँ
वो किसी तौर से. गरीब नहीं
जिसका खाली हो दिल मोहब्बत से
मेरी नज़रों में वो अदीब नहीं
उसका दीदार हैँ इलाज मेरा
चाहिए मुझको है तबीब नहीं
चाँद मांगे है मुझ से नन्ही परी
क्या ये उसकी है जिद अजीब नहीं
ये सियासत है दौरे हाजिर की
कोई रहबर यहाँ नजीब नहीं
प्यार के बदले प्यार ही पाये
हर कोई इतना खुश नसीब नहीं
ज़िंदगानी का कोई भी लम्हा
आप के साथ में मुहीब नहीं
मौत से बेखबर जो है तारिक़
वो बशर अस्ल में अरीब नहीं