परहित जीना परहित मरना -आचार्य सुरेश जोशी

🌸🌸 ओ३म् 🌸🌸
🌻 परहित जीना परहित मरना
आर्य समाज मंदिर गांधी नगर बस्ती के १०५ वें वार्षिकोत्सव की रात्रि कालीन सभा में महर्षि कपिल के सांख्य दर्शन पर चिंतन किया गया।
सहंत परार्थत्वात् पुरुषस्य। अर्थात् मनुष्य का जीवन दूसरों के लिए होना चाहिए।अपने लिए ही जीने वाला मनुष्य 😸 पशु 😸 कहलाता है और शरीर छोड़ने पर पशु योनियों में जाता है ।
परमेश्वर ने जो सृष्टि बनाई है वो जीवात्माओं के पूर्व जन्म के कर्मों के भोग व नये पुरुषार्थ द्वारा मोक्ष को पाने के लिए बनाई है। मगर मोक्ष वहीं मानव पाते हैं जो शरीर,मन,वाणी से निरंतर परहित का चिंतन करते हैं। प्रत्येक मानव को अपनी ही उन्नति से संतुष्ट न रहकर सबकी उन्नति में अपनी उन्नति समझनी चाहिए।
परमार्थ के शब्दों से नहीं अपितु मन,वाणी,शरीर से होना चाहिए।जैसा आत्मा में हो।वैसा मन में,जैसा मन में वैसा वाणी में और जैसा वाणी में वैसा व्यवहार में होना चाहिए।तभी समाज को बदल जा सकता है।
इसी क्रम में पंडिता रुक्मिणी जोशी वैदिक भजनोपदेशिका एवं पंडित नेम प्रकाश लखनऊ ने वैदिक गीत सुनाये।
🔥 अध्यक्षीय भाषण 🔥
जिला सभा के प्रधान आदरणीय ओमप्रकाश आर्य जी ने आर्य समाज के विचारों को जन -जन तक पहुंचाने की अपील की।युवा शक्तियों को वैदिक संस्कृति से जोड़ने बिना राष्ट्र रक्षा असंभव है।योग-यज्ञ व चरित्र निर्माण के लिए आर्य समाज ही एक मात्र संस्था हैं।
आचार्य सुरेश जोशी
वैदिक प्रवक्ता।

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