मगर अपने ही घर में आज भी मेहमान हैउर्दू। नदीम अब्बासी नदीम

अगर यूं देखा जाए तो बहुत आसान है उर्दू,
मगर अपने ही घर में आज भी मेहमान है उर्दू।

मजा लेते हैं सब इस से बना कर दूरियां लेकिन,
यहीं तो देख कर इस मुल्क में हैरान है उर्दू।

पली है मुफ़लिसी में फिर भी सच है मानिये इसको,
मुक़ाबिल में ज़ुबां कोइ भी हो,धनवान
है उर्दू।

बना देती है शीरीं बात कड़वी भी अगर जो हो,
शराफत की समझ लो आज भी पहचान
है उर्दू।

है कैसा सामने वाला बता देती है चुपके से,
परखाने के लिए लोगों को एक मीज़ान है
उर्दू।

किसी का खौफ कैसा खुल के हम कहते हैं ये सब से,
हमारी आन है उर्दू, हमारी शान है उर्दू।

मिटाना बस में जालिम के नहीं इसको नदीमुल्लाह,
बसी है रूह में,कह दो,हमारी जान है उर्दू।

नदीम अब्बासी ‘नदीम’
गोरखपुर।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *