जानता हूं कि यहीं पास कहीं रहता है।-रूपेंद्र नाथ सिंह रूप

ग़ज़ल 
क्या पता कौन गली माहज़बीं रहता है।
जानता हूं कि यहीं पास कहीं रहता है।

पास उसके न कभी ग़म की रसाई होती।
सिर्फ़ ख़ुशियां हैं जहां भी वो हसीं रहता है।

हाथ आता है नसीबों के धनी लोगों के।
वरना हीरा तो कहीं ज़ेरे ज़मीं रहता है।

ढूंढना है तो उसे ढूंढ ग़रीबों के यहां।
हम समझते हैं कि भगवान यहीं रहता है।

उनकी मूरत को बिठा कर के रखा है मन में।
आपके दिल में भी क्या कोई मकीं रहता है।

वो तो मेरे हैं हमेशा ही रहेंगे मेरे।
वो न छोड़ेंगे मुझे इतना यक़ीं रहता है।

दूरियां रूप नहीं आप बढ़ाएं हम से।
दूर होते हैं तो कुछ चैन नहीं रहता है।

रूपेंद्र नाथ सिंह रूप

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