बस्ती के निराला थे मतवाला

अमिय गरल शशि सीकर रविकर राग-विराग भरा प्याला।

पीते हैं जो साधक उनका प्यारा है यह मतवाला।।

निराला की यह पंक्ति जितना उनके पत्र की विषय वस्तु तथा जीवन के संदर्भ को उजागर करती है कुछ वैसा ही जीवन सत्येन्द्रनाथ मतवाला का भी रहा है । बकौल निराला को अपने उपनाम से प्रसिद्धि मिली वैसे ही मतवाला भी उपनाम से मशहूर हुए। निराला ने अपने जीवन के सुख-दुख को बेबाक तरीके से अभिव्यक्त किया है। पर उनमें दुःख सुख के ऊपर हावी रहा है। मतवाला के जीवन में भी उतार-चढ़ाव आते रहे हैं पर उन्होंने अपने सुख पर कभी दुःख को वरीयता नहीं दिया। उनके व्यक्तित्व में हंसी, रुमानियत तथा खिलंदड़े स्वभाव की गझनियत थी। जब भी किसी से मिलते तो उसके दुःख रुपी आंसू को वैसे ही सोख लेते जैसे कोई सोखता जल को सोख लेता है।

यह सामान्य तौर पर देखा जाता है कि आजकल के साहित्यकार पद तथा पैसे वालों की चाटुकारिता में रीतिकाल के भाट तथा चारण कवियों से कम नहीं होते हैं । स्थानीय स्तर के साहित्यकारों में यह योग्यता विशेष रूप से देखने को मिलती है । साहित्य सृजन कम तथा चापलूसी में माहिर होकर अपनी झूठी जय जयकार तथा पुरस्कारों का पुलिंदा बटोरना उनका एकमात्र ध्येय बन गया है। मंच मंच पर वे इस कदर चिपके रहते हैं कि अन्य साहित्यकारों की प्रतिभा ताली बजाने में ही सिमटकर रह जाती है। वे इतने आत्ममुग्ध होते हैं कि अपने से अधिक तालियों की गड़गड़ाहट भी उन्हें नहीं बर्दाश्त होती। अपने को सुनाने में वे इतना मशगूल रहते हैं कि श्रोता उनकी बातों को ध्यान दे रहा है या बैठे-बैठे उकता रहा है इसका अंदाजा लगाना भी मुनासिब नहीं समझते हैं। फूल मालाओं तथा कैमरा को देखकर तो उनकी बांछे और ही खिल जाती है‌। फिर तो वे तब तक अपनी प्रतिभा का लोहा मानवते रहेंगे जब तक कि कैमरामैन उनकी फूल मालाओं से लदी गर्दन को अपने कमरे में कैद नहीं लेता है‌।

ऐसे आप आत्ममुग्धता के दौर में यदि कोई साहित्यकार स्वयं को परदे के पीछे रखकर एक-एक युवा को मंच तथा संगोष्ठियों में अवसर प्रदान करें तो वह निःसंदेह प्रशंसनीय है। इतना ही नहीं मतवालाजी ने न जाने कितने युवाओं जिनका मंच पर जाते ही गला अवरुद्ध हो जाता था तथा बामुश्किल से एक दो पंक्ति ही पाठ कर पाते थे उन्हें प्रोत्साहित करके काव्यपाठ करने कविता लिखने में मुकम्मल बना दिया। ऐसे बहुतों कवियों, साहित्यकारों तथा समाजसेवियों को जो स्थानीय स्तर पर तल्लीन थे उनको संगठित करके एक मंडली तैयार कर दी ‌। इस मंडली की विशेषताएं यह है कि इसमें एक तरफ जहां उच्च योग्यताधारी संकोची युवा है वहीं पर दूसरी तरफ अस्सी,नब्बे तथा अट्ठानवे वर्ष के अनुभवी साहित्यकार एक ही मंच पर हंसी ठिठोली करते हुए अपने काव्य पाठ ,काव्य लेखन तथा अनुभव को साझा करने में कोई गुरेज नहीं करते हैं। सभी आयु वर्ग को एक मंच पर लाकर इकट्ठा बैठा देना और उनके बीच आत्मीयता का संचार कर देना उनकी अद्भुत थी। हमने अनुभव किया है कि जब हम उनके वरिष्ठ नागरिक कल्याण समिति के बैनर तले फिराक गोरखपुरी जयंती के अवसर पर गए तो उन्होंने हम जैसे नौसिखिए लेखक को विशिष्ट अतिथि बनाकर सम्मान दिया।और हमने देखा कि अपने मंडली के वरिष्ठ साहित्यकारों से हमारा परिचय यह बयासी वर्षीय साहित्यकार मतवाला कई बार दे रहे हैं। हमें उस कुर्सी पर आसन देते हैं जिस पर बैठने में हम काफी झिझकते रहे । उन वरिष्ठों के बीच कुर्सी पर आसन लेना तथा विशिष्ट अतिथि के रुप में हमारा परिचय देना हमें काफी बेचैनी भरा लग रह था।लेकिन उनके कई बार आग्रह करने पर हमने तो यह स्वीकार कर लिया । पर जब हमारे संबोधन की बारी आई तो एक दो वाक्य के बाद हमारा कंठ संकोचवश अवरूद्ध होने लगा पर वे हमारे बगल बैठकर हमें निरंतर प्रोत्साहित करते रहे जिससे हम बात निःसंकोच कह लें गये। सुबह-सुबह फिर उन्होंने फोन किया कि किन-किन दैनिक समाचार पत्रों में आपके वक्तव्य को स्थान दिया गया है। ऐसे में मेरा यह सब बताने का एक ही उद्देश्य है कि नए जिज्ञासुओ , साहित्यकारों को प्रोत्साहित करना तथा उन्हें सम्मान देना उनकी फितरत में शामिल था।

हम सभी इस बात के साक्षी हैं कि चंद लम्हों में साहित्यकारों, समाजसेवियों ,बुद्धिजीवियों तथा कानूनविदों को एकत्रित करके कार्यक्रम आयोजित कर देना उनके दाएं बाएं हाथ का खेल था‌। कलेक्ट्रेट परिसर के सामने शर्माजी का वह तख्ता सदैव कार्यक्रमों से गुलजार रहता था पर अब वह सूना सा हो गया है। शर्मा जी का साहित्य के प्रति अनुराग तथा लगाव ही है जो संगोष्ठियों के लिए स्थान देने तथा कार्यक्रम में सहभागिता निभाने के लिए हमेशा तत्पर दिखते हैं। यद्यपि वे आज भी ऐसा करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं पर मतवाला जी की तरह समयबद्ध तरीके से प्रतिदिन दो बजे उनके चेंबर में आ जाना , कैलेंडर तथा समय के अनुसार गोष्ठी तथा जयंती का आयोजित करने की रुपरेखा बनना और स्थानीय साहित्यकारों के इस गमले को सहेजने,खाद पानी देने , उन्हें पुष्पित पल्लवित होने के लिए खुला आसमां देने की जो कला उनमें थी वह आज रिक्त हो गई है।

कवि तथा साहित्यकार के रुप में मतवाला जी जहां जनपद में हमेशा ऊर्जावान रहें वहीं बैंक कर्मी तथा समाजसेवी के रुप में सदैव तत्पर और अपनी पहचान को कायम रखी। बैंक में उन्होंने अपना कार्य हंसते मुस्कुराते सेवाभाव से किया। उनके ग्राहकों से इस बात का पता चलता है कि जो भी उनके पास किसी काम के लिए जाता तो वह उनके कार्यशैली और व्यवहार से अवश्य प्रभावित हो जाता। जहां तक उनसे हमारे जान पहचान की बात है तो वह मात्र चार पांच सालों का ही है। इतने परिमित अवधि में उनको व्यक्तित्व की मुकम्मल जानकारी देना छोटी मुंह बड़ी बात होगी। ऐसे में मतवाला जी के विषय में उनके सगे संबंधियों से बातों को सुनकर अनुमान लगाया जा सकता है।उनके समाजसेवा के विषय उन्हीं के परम सहयोगी शर्माजी से हमने यह जाना कि एकबार जब ग्रेवी गैस सिलेंडर आसानी से आम उपभोक्ताओं को नहीं मिल पा रहा था तो उन्होंने इसके लिए जिलाधिकारी कार्यालय पर अनशन किया था।और ऐसे न जाने कितने प्रकरण इनके साथ जुड़े हुए थे। एक साहित्यकार की समाज के प्रति क्या संवेदनशीलता होती है उनके सामाजिक कार्यों से हम सहज ही अवगत हो सकते हैं। एक बात जिसका जिक्र यदि हम न करें तो हम अपने लेखन के साथ गुस्ताखी करेंगे। मतवाला जी के ह्रदय में बुद्धिजीवियों, शिक्षकों, साहित्यकारों तथा समाजसेवियों के प्रति सम्मान की भावना बलवती थी। शिक्षक दिवस के अवसर पर वे प्रति वर्ष अपनी तरफ से कार्यक्रम आयोजित करते थे तथा जनपद के सभी शिक्षकों जो भी उनके कार्यक्रम में पहुंचता था उसे सहर्ष सम्मानित करते । इस तरह उनका एक क्षण का यह परिचय दीर्घकालिक संबंधों में परिवर्तित हो जाता‌। यह हम उनके व्यक्तित्व का चुम्बकत्व ही कह सकते हैं।

जहां तक मतवालाजी के लेखनी का सवाल है उनकी रचनाएं जहां पराग तथा नंदन जैसी प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। वहीं पर उन्होंने बस्ती मंडल का गौरव नामक पुस्तक लिखकर इस मंडल के स्थानीय कवियों, समाजसेवियों तथा साहित्यकारों को समुचित स्थान दिया है। इस पुस्तक में उन्होंने सभी नवोदित साहित्यकारों की रचनाओं,उनका संक्षिप्त परिचय तथा उनके कार्यों को समुचित स्थान देने का प्रयास किया है। वर्तमान समय में पूर्वांचल के गौरव नामक पुस्तक पर उनका कार्य चल रहा था। हम इस बात के साक्षी हैं कि वह किस प्रकार एक-एक साहित्यकारों, कवियों तथा समाजसेवियों के विषय में जानकारी एकत्रित करते तथा शाम चार बजे प्रतिदिन उसे टाइप कराना,उम्र के इस पड़ाव में प्रफुल्लित मन से प्रूफ रीडिंग करना,एक-एक शब्दों में सुधार करना बहुत ही दत्तचित्त होकर करते। पर काल को यह मंजूर नहीं हुआ और वह उनके इस नेक कार्य में पूर्ण विराम लगा दिया।

ऐसे में फिराक गोरखपुरी के खानदान से ताल्लुक रखने वाला बस्ती जनपद का यह निराला कब अपने मतवालेपन को भूलकर पंचतत्व में विलीन हो गया इसका आज भी विश्वास नहीं हो पाता है। उसके मस्तीपन की ख़ुशबू अभी भी इस जनपद आबोहवा में बिखरी हुई है जो हम सबको अपनेपन में समेटे हुए है।यकीनन मृत्यु निश्चित है फिर भी हम सभी आपकी यादों से प्रेरणा लेते रहेंगे।ताज भोपाली का यह शेर बरबस याद आ जाता है-

ये जो कुछ आज है कल तो नहीं है।

ये शाम-ए-गम मुसलसल तो नहीं है।

यकीनन तुममें कोई बात होगी।

ये दुनियां यूं ही पागल तो नहीं है।‌।

 

नीरज कुमार वर्मा नीरप्रिय

किसान सर्वोदय इंटर कालेज रायठ बस्ती उ.प्र.

8400088017

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