अनुराग लक्ष्य, 4 अक्टूबर
सलीम बस्तवी अज़ीज़ी,
मुंबई संवाददाता ।
,,मेरे बुजुर्गों के सर की पगड़ी जो हो सके तो बचाए रखना
दिलों में उनकी नसीहतों के जो फूल हैं वोह खिलाए रखना
यह वक्त ऐसा ही आ गया है कि फिक्र करने की है ज़रूरत
किसी भी सूरत में अपने घर को मुहब्बतो से सजाए रखना,,,
जी हां, हम बात कर रहे हैं धरावी की मशहूर ओ मारूफ शख्सियत मोहम्मद दावूद मस्तान मरहूम की, जिनकी 11 वीं बरसी के मौके पर उनके चाहने वालों ने तालवाड़ी कब्रिस्तान में फातिहा खोवानी करके अपनी अपनी मुहब्बतों का इज़हार करके अपनी अपनी खेराज ए अकीदत पेश की। साथ ही मरूहम दावूद मस्तान के हक में बारी ए ताला से उनकी मगफिरत की दुआएं मांगी गईं।
प्रोग्राम का आगाज़ मौलाना समर के नतिया कलाम से हुआ, तदुप्रांत शायर एवं गीतकार सलीम बस्तवी अज़ीज़ी ने अपना कलाम,
ज़र्रे ज़र्रे में तेरा मुझको नूर दिखता है
हर तरफ़ तेरा ही मुझको जहूर दिखता है
कौन है जिसको तेरे मय की नहीं है खोवाहिश
इसलिए मुझमें भी थोड़ा सुरूर दिखता है,
सुनाकर महफिल में समां बांधा।
कार्यक्रम में यूसुफ शेख, इम्तियाज शेख, फखरे आलम,हाफिज कलाम बाबा, मौलाना समर, अहसान साबरी, मुहम्मद जुबेर, हसन कादरी, आरीफ शेख,नुरुल हसन, मुन्ना भाई,इत्यादि ने अपने अपने अंदाज़ में खेराज़ ए अकीदत पेश की।
प्रोग्राम का समापन यूसुफ शेख के दुरुद ओ सलाम के साथ हुआ।