जाड़ा आया रे
ठंडी-ठंडी चलती बयार,
धूप भी लगती अब गुलजार।
कप-कप काँपे हाथ-पैर,
माँ बोले — पहन ले स्वेटर ढेर।
सुबह नहाने का मन न करे,
भाप निकलती हर साँस भरे।
चाय-पकौड़े की मस्त खुशबू,
रजाई बोले — मत निकल तू।
धूप में बच्चे खेलें जाएँ,
टोपी-मफलर खूब पहनाएँ।
जाड़ा लाया मस्ती प्यारी,
लाल-गुलाबी हर क्यारी।
गिलहरी कूदे डाल-डाल,
सूरज निकले तो खुशहाल।
बोलो सब मिल प्यारे-प्यारे —
“जाड़ा आया रे, जाड़ा आया रे!”
– डॉ प्रियंका सौरभ
-प्रियंका सौरभ
रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस,
कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,
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