दिख रही है आज जो हर दिल में आग, डाल देगी कल तुम्हें मुश्किल में आग, सलीम बस्तवी अज़ीज़ी,,,,
अनुराग लक्ष्य, 25 अक्टूबर
मुम्बई संवाददाता ।
सलीम बस्तवी अज़ीज़ी
सामयीन आप यकीन मानें कि ग़ालिब, मीर, फ़ैज़, दाग़ और फ़िराक़ गोरखपुरी से होती हुई शायरी जो मेरी दहलीज तक पहुंची, उससे मैने बेपनाह मुहब्बत की, और यह उसी की देन है
कि मैं आज हिंदुस्तान के मायनाज़ हस्तियों के बीच खड़े होकर कुछ कहने और सुनने की जसारत करता हूँ। इसी लिए आज कुछ महकते और खनकते जज्बात के साथ आप से रूबरू हो रहा हूँ ।
1 / मेरे बुजुर्गो के सर की पगड़ी जो हो सके तो बचाए रखना,
दिलों में उनकी नसीहतों के जो फूल हैं वोह खिलाए रखना,
यह वक्त ऐसा ही आ गया है कि फिक्र करने की है ज़रूरत,
किसी भी सूरत में अपने घर को मुहब्बतों से सजाए रखना,,,,,
2/ दिख रही है आज जो हर दिल में आग,
डाल देगी कल तुम्हें मुश्किल में आग,
धर्म और मज़हब के परचम क्या उठे,
चाँद सूरज तारों की झिलमिल में आग,,,,
3/ दूर गगन की छांव में होता कहीं इक छोटा सा घर,
तारे ज़मीं पे घूमने आते हम पूछते आसमाँ की डगर,
काश यहाँ कुछ ऐसा होता, दिल सबका इक जैसा होता,
न भूख होती न प्यास होती, खुशियाँ ही खुशियाँ आतीं नज़र,,,,
4/ मिलेगी दौलत ओ शोहरत स्यासत की ज़मीनें भी,
करो जब भी कोई वादा तो वादे से मुकर जाओ,
न यह कुरुक्षेत्र है न कर्बला यह जंग ए इंसाँ है,
तुम इनके पास जब जाओ लिए लाल ओ गुहार जाओ,,,,