जब भी होते हैं मुल्क पे हमले, हमसे कितने सवाल होते हैं, सुम्बुल हाशमी गोरखपुरी

जब भी होते हैं मुल्क पे हमले, हमसे कितने सवाल होते हैं, सुम्बुल हाशमी गोरखपुरी,,,,,,

अनुराग लक्ष्य, 21 अक्टूबर

सलीम बस्तवी अज़ीज़ी

मुम्बई संवाददाता ।

हिंदुस्तान के मशहूर ओ मारूफ शायर रघुपति सहाय फिराक गोरखपुरी को कौन नहीं जानता । उन्हीं फिराक गोरखपुरी की ज़मीन से बहुत से अदबी हीरे पैदा पैदा हुए जो अपनी अदबी और साहित्यिक पहचान से गोरखपुर का नाम रोशन कर रहे हैं। जिनमें एक नाम अभी कुछ सालों में बहुत तेज़ी से उभरा, दुनिया ए अदब जिसे सुम्बुल गोरखपुरी के नाम से जानती और पहचानती है l गंगा जामुनी तहज़ीब का यह शायर आज गोरखपुर ही नहीं बल्कि प्रदेश के ज़्यादा से ज़्यादा मुशायरे और कविसम्मेलनों में हमेशा अपना मौजूदगी का ऐहसास करा रहा है। प्रस्तुत है आज ऐसे ही शायर की एक अनूठी ग़ज़ल ,,,

1/ जो तेरे हमखयाल होते हैं,

बस वही बाकमाल होते हैं ।

2/ जब भी होते हैं मुल्क पे हमले,

हमसे कितने सवाल होते हैं ।

3/ ज़ुल्फ़ जैसी घटा भी होती है,

फूल जैसे भी गाल होते हैं ।

4/ तोड़ लेते हैं रिश्ते नाते जब,

रास्ते फिर मुहाल होते हैं ।

5/ नाम लेते हैं हर घड़ी रब का,

जब भी दुख से निढ़ाल होते हैं ।

6/ दुश्मनों को बुरा कहा मैने,

आप क्यों लाल लाल होते हैं ।

7/ सीख लेते हैं जब वो मक्कारी,

तब वही लेखपाल होते हैं ।

,,,,पेशकश, सलीम बस्तवी अज़ीज़ी,,,,