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नर्म थी जो बात कैसे इन्क़ेलाबी हो गयी,
सच बताओ कैसे ये वादाख़िलाफ़ी हो गयी।
जिसको ख़ुसरो ने कभी जन्नत कहा था,देख लो,
बम धमाकों और बारूदों की वादी हो गयी।
देख लो फ़ेहरिस्त-ऐ-शोहदा इंडिया के गेट पर,
फिर बताओ क़ौम ये कैसे फ़सादी हो गयी।
कोठियां हैरान हैं कि बिन मदद उनके भला,
कैसे उस मज़दूर के बेटी की शादी हो गयी।
उसकी आँखों से ख़ुशी के अश्क हैं अब तक रवाँ,
जब सुना माँ ने मेरी कि वो भी दादी हो गयी।
ये सबक़ हमको भी लेना चाहिए नेपाल से,
भोली भली भीड़ कैसे उग्रवादी हो गयी।
बंद आँखे खोल कर अब देखीये इनको नदीम,
रहबरों के भेस में रहज़न ये खादी हो गयी।
नदीम बासी “नदीम”
गोरखपुर॥