तिरंगा यात्रा के साथ मनाया गया स्वतंत्रता दिवस

बस्ती ( दैनिक अनुराग लक्ष्य ) स्वतंत्रता का अर्थ है अपने बनाए नियम के अनुकूल चलना और स्वछंदता का अर्थ है मनमानी करना। स्वतंत्र व्यक्ति ही देश का विकास कर सकता है यह बातें मुख्य अतिथि आचार्य विश्वव्रत ने स्वामी दयानंद विद्यालय सुरतीहट्टा बस्ती में आयोजित स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर बच्चों को संबोधित करते हुए कही। इस अवसर पर उन्होंने स्वामी दयानंद सरस्वती की जीवन गाथा सुनाते हुए स्वतंत्रता आंदोलन में उनके द्वारा किए गए योगदानों को बताया। इससे पूर्व कार्यक्रम का शुभारम्भ मुख्य अतिथि आचार्य विश्वव्रत और स्वामी श्रद्धानंद द्वारा ध्वजारोहण द्वारा किया गया तत्पश्चात तिरंगा यात्रा के साथ स्वतंत्रता दिवस अत्यंत हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। इस अवसर पर बच्चों ने गीत, कविता, नाटक, हास्य कथा और भाषण प्रस्तुत किया। विशिष्ट अतिथि स्वामी श्रद्धानंद ने अमर हुतात्माओं की जीवन गाथा सुनकर विद्यार्थियों और अभिभावकों को रोमांचित कर दिया।विद्यालय के शिक्षक शिक्षिकाओं ने बच्चों को स्वतंत्रता के अमर हुतात्माओं की सच्ची कहानी सुनाकर भाव विभोर कर दिया। इस अवसर पर आचार्य देवव्रत आर्य, दिनेश मौर्य, अरविंद श्रीवास्तव और शिवांगी गुप्ता आदि ने बच्चों को स्वतंत्रता की सुरक्षा के लिए निरन्तर प्रयास करने के सुझाव दिए। प्रबन्धक ओम प्रकाश आर्य ने बताया कि सैकड़ों वर्षों की इस गुलामी के बाद १५ अगस्त की स्वतंत्रता हमारे नये सपनों, नये अरमानों, नव भारत, विकसित भारत और सामाजिक समरसता की अनुभूति लेकर आया था। नई सोच और नई पीढ़ी से फिर समृद्ध भारत की अभिलाषा थी। लेकिन आजादी के ७९ वर्ष बाद भी आज हमारा देश इस्लामिक आतंकवाद, जनसंख्या विस्फोट, घुसपैठिया बेरोजगारी, गरीबी, वर्गवाद, जातिवाद, शिक्षा, चिकित्सा, खाद्यान्न, जल, आवास, और अपने मूल स्वरुप के लिए जूझ रहा है। ऐसी ढेरों समस्याऐं आज हमारे मन और घरों में प्रवेश कर चुकी हैं। हालिया वर्षों में हमारे पडो़सी राष्ट्र चीन, पाकिस्तान हमारे सरजमीन पर फिर से बुरी नजरे लगाए बैठे हैं। वही चीन के समान हमारी देश की अर्थव्यवस्था की धुरी स्वदेशी वस्तुओं पर भारी पड़ रहे हैं। ऐसे हालात हमें और विकराल हालात में ले जा सकते हैं। स्वतंत्रता दिवस के इस पावन पर्व पर हम सब राष्ट्रवाद की ओर फिर से अग्रसर होकर नये संकल्प, नये दृढ़ निश्चिय विश्वासों के साथ विकसित भारत का संकल्प ले। तिरंगे को अपनी आन बान और शान समझे। स्वदेशी वस्तुओं को अपनाऐ। चाइना वस्तुओं का बहिष्कार करे। स्वदेश से अथक प्रेम करे। जाति, धर्म और भाषा का भेद मिटाए। हमारे राष्ट्र की ओर उठने वाली प्रत्येक आंख को कुचल डाले। कार्यक्रम का संचालन करते हुए आदित्यनारायण गिरि ने बताया कि अपने पुरातन संस्कारों और संस्कृति को सहेजकर कर हम स्वतंत्रता की रक्षा कर सकते हैं। प्रधानाचार्य गरुण ध्वज पाण्डेय ने अतिथियों के प्रति हृदय से आभार जताया। पुरस्कार और मिष्ठान्न वितरण के साथ कार्यक्रम संपन्न हुआ।