श्रीमद्भगवद् गीता मात्र 108 पंक्तियों में

श्रीमद्भगवद् गीता मात्र 108 पंक्तियों में

 

अध्याय 1

अर्जुन विषाद योग में अर्जुन की व्यथा का वर्णन है,

युद्ध के मैदान में परिवार को देखकर व्यथित हुआ।

भगवान श्रीकृष्ण ने समझाया कि युद्ध करना कर्तव्य है,

अपने धर्म को पूरा करने के लिए युद्ध में भाग लेना चाहिए।

आत्मा अमर है, शरीर की मृत्यु के बाद भी जीवित रहती है,

कर्तव्य और धर्म को पूरा करने के लिए निरंतर प्रयास करना चाहिए।

 

अध्याय 2

दूसरे अध्याय में सांख्य योग की बातें हैं,

कर्म और धर्म के बीच का संबंध समझाया है।

अर्जुन के संदेह को दूर करने के लिए,

भगवान ने आत्मा की अमरता की बात कही।

न तो जन्म होता है, न ही मृत्यु,

आत्मा तो सदा के लिए अमर है।

 

अध्याय 3

तीसरे अध्याय में कर्म योग की बातें हैं,

कर्मों को करने का सही तरीका बताया है।

भगवान ने अर्जुन को कहा कर्म करो,

परंतु फल की इच्छा न करो, यही कर्म योग है।

कर्मों से ही जीवन का उद्देश्य पूरा होता है,

और आत्मा को शांति मिलती है।

 

अध्याय 4

ज्ञान कर्म संन्यास योग में भगवान की बातें हैं,

ज्ञान और कर्म दोनों महत्वपूर्ण, ज्ञान के बिना कर्म अधूरा है।

संन्यास का अर्थ है कर्म को ईश्वर को समर्पित करना,

और उनकी इच्छा के अनुसार कार्य करना, यही संन्यास का सार है।

यज्ञ का अर्थ है ईश्वर को समर्पित करना,

और उनकी इच्छा के अनुसार कार्य करना, यही जीवन का ध्येय है।

 

अध्याय 5

कर्म संन्यास योग में भगवान की बातें हैं,

कर्म और संन्यास दोनों महत्वपूर्ण, दोनों ही जीवन के सार हैं।

संन्यास का अर्थ है कर्म को ईश्वर को समर्पित करना,

और उनकी इच्छा के अनुसार कार्य करना, यही जीवन का ध्येय है।

मन और बुद्धि को शुद्ध करना होगा, आत्म-साक्षात्कार करना होगा,

तभी हम जीवन के सच्चे अर्थ को समझ पाएंगे।

 

अध्याय 6:

छठे अध्याय में ध्यान योग की बातें हैं,

मन को शांत करने के लिए ध्यान का महत्व है।

ध्यान से आत्मा को जान सकते हैं,

और जीवन के सच्चे अर्थ को समझ सकते हैं।

ध्यान योग से मन को शुद्ध किया जा सकता है,

और आत्म-साक्षात्कार किया जा सकता है।

 

अध्याय 7

सातवें अध्याय में ज्ञान विज्ञान की बातें हैं,

भगवान के स्वरूप को जानने का महत्व है।

माया के तीन गुणों को जानना होगा,

सत्व, रज और तम को समझना होगा।

भगवान की कृपा से ही ज्ञान प्राप्त होता है,

और आत्म-साक्षात्कार किया जा सकता है।

 

अध्याय 8

आठवें अध्याय में अक्षर परब्रह्म की बातें हैं,

भगवान के स्वरूप को जानने का महत्व है।

अक्षर परब्रह्म को जानने से मोक्ष मिलता है,

और आत्मा को शांति मिलती है।

भगवान की कृपा से ही ज्ञान प्राप्त होता है,

और आत्म-साक्षात्कार किया जा सकता है।

 

अध्याय 9

नौवें अध्याय में राजविद्या राजगुह्य की बातें हैं,

भगवान की कृपा से ही ज्ञान प्राप्त होता है।

राजविद्या को जानने से मोक्ष मिलता है,

और आत्मा को शांति मिलती है।

भगवान की भक्ति से ही जीवन का उद्देश्य पूरा होता है,

और आत्म-साक्षात्कार किया जा सकता है।

 

अध्याय 10

दसवें अध्याय में विभूति विस्तर की बातें हैं,

भगवान की महिमा को जानने का महत्व है।

भगवान की विभूतियों को जानने से भक्ति बढ़ती है,

और आत्मा को शांति मिलती है।

भगवान की कृपा से ही ज्ञान प्राप्त होता है,

और आत्म-साक्षात्कार किया जा सकता है।

 

अध्याय 11

ग्यारहवें अधित्य में विश्वरूप संदर्शन की बातें हैं,

अर्जुन को विश्वरूप दर्शन हुआ है।

भगवान की महिमा को देखकर अर्जुन हैरान हुआ,

और उनकी शक्ति का अनुभव किया।

विश्वरूप में भगवान की सारी शक्तियाँ दिखाई दीं,

और अर्जुन को आत्म-ज्ञान प्राप्त हुआ।

 

अध्याय 12

बारहवें अध्याय में भक्ति योग की बातें हैं,

भगवान की भक्ति से ही मोक्ष मिलता है।

भगवान की भक्ति से आत्मा को शांति मिलती है,

और जीवन का उद्देश्य पूरा होता है।

भगवान की कृपा से ही भक्ति प्राप्त होती है,

और आत्म-साक्षात्कार किया जा सकता है।

 

अध्याय 13

तेरहवें अध्याय में क्षेत्र क्षेत्रज्ञ की बातें हैं,

भगवान की महिमा को जानने का महत्व है।

क्षेत्र है शरीर, क्षेत्रज्ञ है आत्मा,

इन दोनों के बीच का संबंध जानना होगा।

भगवान की कृपा से ही ज्ञान प्राप्त होता है,

और आत्म-साक्षात्कार किया जा सकता है।

 

अध्याय 14

चौदहवें अध्याय में गुण त्रय विभाग योग की बातें हैं,

सत्व, रज और तम गुणों को समझना होगा।

इन गुणों के आधार पर जीवन को जीना होगा,

और आत्मा को शुद्ध करना होगा।

सत्व गुण से ज्ञान प्राप्त होता है,

और आत्म-साक्षात्कार किया जा सकता है।

 

अध्याय 15

पंद्रहवें अध्याय में पुरुषोत्तम योग की बातें हैं,

भगवान की महिमा को जानने का महत्व है।

अश्वत्थ वृक्ष के रूप में जीवन को समझना होगा,

और आत्मा को शुद्ध करना होगा।

भगवान की कृपा से ही ज्ञान प्राप्त होता है,

और आत्म-साक्षात्कार किया जा सकता है।

 

अध्याय 16

सोलहवें अध्याय में दैवासुर संपद् विभाग की बातें हैं,

दैवी और आसुरी गुणों को समझना होगा।

दैवी गुणों से आत्मा को शुद्ध किया जा सकता है,

और आसुरी गुणों से बचना होगा।

भगवान की कृपा से ही ज्ञान प्राप्त होता है,

और आत्म-साक्षात्कार किया जा सकता है।

 

अध्याय 17

सत्रहवें अध्याय में श्रद्धा त्रय विभाग की बातें हैं,

श्रद्धा के महत्व को जानने का समय है।

श्रद्धा से ही आत्मा को शुद्ध किया जा सकता है,

और भगवान की कृपा प्राप्त होती है।

श्रद्धा के तीन प्रकार हैं – सात्विक, राजसिक और तामसिक,

इनको समझने से जीवन का उद्देश्य पूरा होता है।

 

अध्याय 18

अठारहवें अध्याय में मोक्ष संन्यास योग की बातें हैं,

कर्म, धर्म और मोक्ष का रहस्य खुलता है।

कर्मों को त्यागने से मोक्ष प्राप्त होता है,

और आत्मा को शांति मिलती है।

भगवान की कृपा से ही मोक्ष प्राप्त होता है,

और जीवन का उद्देश्य पूरा होता है।

 

श्रीमद्भगवद् गीता की आरती:

 

जय गीता ज्ञान की देवी, जय गीता की महिमा।

अर्जुन को समझाया, कर्म का महत्व।

आत्मा की अमरता, शरीर की नश्वरता।

ज्ञान और कर्म से मिलता है मोक्ष की प्राप्ति।

भगवान की भक्ति से आत्मा को शांति मिलती है।

जीवन का उद्देश्य पूरा होता है, मोक्ष की प्राप्ति होती है।

गीता के ज्ञान से जीवन को सही मार्ग मिलता है।

जय गीता ज्ञान की देवी, जय गीता की महिमा।

 

स्वरचित एवं अप्रकाशित

मुकेश कविवर केशव सुरेश रूनवाल,

जोधपुर (राज.)