मैथिली भाषा (श्रृंगार-रस में पति-परमेश्वर के लिए समर्पित एक रचना)

मैथिली भाषा (श्रृंगार-रस में पति-परमेश्वर के लिए समर्पित एक रचना)

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हम्मर पिया गेल परदेस में,

हमरा लेल दाल-रोटी कमाए।

जखन उ परदेस से लौट के एथिन,

चुपचाप हमरा दिल में समाय। 

 

थक-हार के अहाँ आइब गेलौं,

एक लोटा जल से पैर पखारब।

किछु बातचीत आ मन बहला क,

हम अहाँ के थकान मिटाएब। 

 

कि खयबै, कि पिबयै,

हमरा तनिक दिउ बताए।

स्वादिष्ट पकवान हम बनाइब,

देख क पिया के मन ललचाए। 

 

जीवन में सुख-दुख भाई छथिन,

मुसीबत के दुनू सामना करब।

प्रेम आ संतोष भरा जीवन,

धरा पर स्वर्ग विराज करै।

 

साग-पात, नोन-तेल,

नमक-रोटी भले ही खायब।

क़र्ज़ लेकर समूचे दुनिया से,

अप्पन जीवन नय बर्बाद करब। 

 

अप्पन कष्ट किनको नय कहब,

आजुक दुनिया के लोग छै शैतान।

बुरबक बन क सब दिन अहाँ,

भ जेब आजीवन के लेल परेशान। 

 

हमरा नय झुमका चाही,

ना ही दोनों कान की बाली।

हमरा अहाँ तनिक सच्चा प्रेम करब,

अपना आप के बुझब पतिव्रता नारी।

 

ऐतेक प्रेम अहाँ से हम करयछि,

सपना में भी हरदम अहीं के दर्शन करयछि।

प्रेम, स्नेह आ वात्सल्य श्रीकृष्ण का, 

आ शिव रूप में अहीं के हरदम दर्शन पाबयछि।

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       प्रकाश राय, समस्तीपुर, बिहार