कुदरहा। कुदरहा ब्लाक के छरदही गांव में चल रही नौ दिवसीय संगीतमयी श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन ब्यास पीठ से प्रवचन सत्र में व्यक्त करते हुए कथा वाचक अयोध्या धाम से पधारे आचार्य पं घनश्याम किशोर मिश्र ने शुकदेव व महाराज परीक्षित संवाद का वर्णन करते हुए कहा कि एक बार परीक्षित महाराज वन में चले गए। उनको प्यास लगी तो समीक ऋषि से पानी मांगा वे समाधि में लीन थे। इसलिए पानी नहीं पिला सके। राजा परीक्षित ने सोचा कि साधु ने अपमान किया है। उन्होंने मरा हुआ सांप उठाया और समीक ऋषि के गले में डाल दिया। यह सूचना पास में खेल रहे बच्चों ने समीक ऋषि के पुत्र को दी। ऋषि के पुत्र ने श्राप दिया कि आज से सातवें दिन तक्षक नामक सर्प आएगा और राजा को जलाकर भस्म कर देगा। समीक ऋषि को जब यह पता चला तो उन्होंने दिव्य दृष्टि से देखा कि यह तो महान धर्मात्मा राजा परीक्षित हैं और यह अपराध इन्होंने कलियुग के वशीभूत होकर किया है। समीक ऋषि ने जब यह सूचना जाकर परीक्षित महाराज को दी तो वह अपना राज्य अपने पुत्र जन्मेजय को सौंपकर गंगा नदी के तट पर पहुंचे। वहां बड़े ऋषि, मुनि देवता आ पहुंचे और अंत में व्यास नंदन शुकदेव वहां पहुंचे। शुकदेव को देखकर सभी ने खड़े होकर उनका स्वागत किया। कथा सुनकर श्रद्धालु मंत्रमुग्ध हो गए।
कथा में मुख्य यजमान राजेंद्र प्रसाद दुबे, आचार्य आनंद मिश्रा, राजू दुबे, नरेंद्र प्रसाद, धर्मेद्र दुबे, रविद्र, गुड्डू, शिखर, विनय, अतुल दुबे, राम प्रकट उपाध्याय, इंद्रजीत दुबे, पंडित हरिराम, बिजली गोस्वामी सहित तमाम लोग मौजूद रहे।