जाना मृत्यु का अर्थ जिनने

जाना मृत्यु का अर्थ जिनने?

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बागी बलिया की मिट्टी में जन्मे थे

स्वाधीनता मंगल पांडेय का नारा था

था स्वतंत्रता का वह प्रथम सेनानी

जिसने 29 मार्च को ललकारा था।

 

अरे अंग्रेजों! तुम विदेशी शासक

क्रूरता पोषक, भेदभाव प्रशासक

करो प्रस्थान, तुम्हे जाना होगा

तुम छोड़ो भारत तब यह नारा था

 

जन्मभूमि पवित्र हमारी है यह

यह प्यारा हिन्दुस्तान हमारा है

तुझे शीघ्र यहां से जाना होगा

मंगल पांडेय ने ही ललकारा था।

 

सुनी नहीं गई जब उनकी बात

बदले में हुए जब उनपर आघात

सहन करता कैसे वह वीर सपूत

उठा लिया भरी बंदूक, कारतूस

 

झोंक ही डाला उस अफसर को

जिसने उनपर क्रूर प्रहार किया था

था “भृगुवंशी” कैसे भूल जाय इसे

छाती पर चढ़कर वार किया था

 

उतर पड़े तब पहन के चोला

केसरिया साथी सब बलिदानी

वो भी टीम क्या टीम थी भैया

स्वराज्य, स्वदेश के अभिमानी

 

उसमे सम्मिलित जो साथी वीर

उन्हें राजा-रानी-प्रजा मत कहो

राष्ट्र प्रेमी थे, वे स्वाभिमानी थे

उन्हें सेनानी औ राष्ट्र भक्त कहो

 

कितनों ने खाई गोली यहां पर

कितने ही फांसी पर झूल गए

मृत्यु के इस सौन्दर्य पर भाई !

हंसकर मृत्यु का फंदा चूम गए

 

लाखों जीवन कुर्बान है भाई !.

‘जीवन’ जो नहीं कर सकता..

वहां संघर्ष राह दिखलाती है

‘मृत्यु’ उसे परिपूर्ण करती है

 

खाई थी पहली गोली मंगल ने

उसके बाद तो झड़ी लग गई

यहां वहां छिड़ गई क्रांति अब

स्वतंत्रता की मशाल जल गई

 

लेकिन यह भी सच है भैया !

मरना भी नहीं आता है सबको

जीना भी सीख न पाए ढंग से

वह भला मरना भी क्या जानेगा

 

क्या ‘मृत्यु सौंदर्य’ पहचानेंगे ?

क्या मृत्यु के सत्य को जानेंगे ?

कुछ तो मरते है केवल एकबार

कुछ एक ही दिन में कई कईबार

 

मंगल पांडेय ने ही सिखलाया

जीवन जीना कहते हैं किसको

जीवन जीना जान लिया जिसने

अरे मरना भी आता है उसी को

 

मृत्यु समापन नहीं, सृजन है

यह विनाश नहीं, अमरता है

‘मृत्यु’ अवकाश नहीं, दीप है

राष्ट्र के प्रति पवित्र दायित्व है

 

नवजीवन प्राप्ति का द्वार है

अमरत्व के लिए अवसर है

इस मृत्यु में असीमित शक्ति

ऋण मुक्त होने का अवसर है

 

इसमें ऊर्जा निहित है कितनी

भगत और आजाद से पूछो !

कैसे कितना जोश जगती है?

गुरु’अर्जुन’ और ‘तेगा’से पूछो

 

“मृत्यु” की सार्थकता है क्या?

इसे पूछो वीर – बलिदानी से

मृत्यु की इस सौन्दर्य पे भाई

लाखों जीवन, कुर्बान है भाई।

 

प्रथम वीर की पुरुषार्थ तिथि

उन्हें बारम्बार नमन, वंदन है

चल पड़े थे उनके पीछे पीछे

उनको भी साथ नमन, वंदन।

 

*डॉ जयप्रकाश तिवारी*

बलिया/लखनऊ, उत्तर प्रदेश