ग़ज़ल
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कह रहा हूँ जो बात लब पर है,
बस वही भाव मेरे अन्दर है,,
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लोग हट जायेगें मुहब्बत से,
नफ़रतें बाँटता जो रहबर है,,
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जा चुका है तू बज़्म से मेरी,
तेरी यादों का एक लश्कर है,,
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देख कर अश्क़ मुस्कुराते हो,
लग रहा दिल तुम्हारा पत्थर है,,
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काम आए कभी न दोस्त मेरे,
मेरा दुश्मन भी उनसे बेहतर है,,
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मैंने माना बहुत अमीर हो तुम,
ये न समझो के कोई कमतर है,,
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सारी नाकाम हो गयी हिकमत,
“ज़िंदगी दर्द का समुंदर है,”
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“अक्स”रस्ते में सम्हालना होगा,
खार खाये हुए तो रहबर है,,
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✍️अक्स वारसी,,
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