उन्मुक्त उड़ान मंच की संस्थापिका एवं अध्यक्षा डॉ दवीना अमर ठकराल ‘देविका’ के मार्गदर्शन में एक ज्वलंत सामाजिक मुद्दा उठाया गया| आयोजन प्रभारी अमिता गुप्ता “नव्या” सुरभि के अनुसार, वर्तमान समय में धर्म और जाति के नाम पर हो रही राजनीति एक ज्वलंत मुद्दा बन चुकी है। इससे देश की एकता, अखंडता और संप्रभुता प्रभावित हो रही है। धार्मिक एवं सांप्रदायिक तनाव समाज में विघटन उत्पन्न कर रहा है, जो देश के विकास में बाधक है।
माधुरी श्रीवास्तव का कहना है कि यदि लोग अनर्गल विवादों से दूर रहते हुए अपने धर्म और जाति का उत्थान करें, तो देश और समाज का संपूर्ण विकास संभव हो सकेगा। नंदा बमराडा मानती हैं कि “देश से बढ़कर कोई धर्म नहीं है, देश है तो हम हैं और हमारी पहचान भी देश से ही जुड़ी है।” अतः सच्ची देशभक्ति ही हमारा वास्तविक धर्म होना चाहिए।
संजीव कुमार भटनागर ने कहा कि भारत की पहचान “विविधता में एकता” के रूप में होती है, लेकिन जब धार्मिक और जातिगत कटाक्ष बढ़ते हैं, तो समाज में बिखराव की स्थिति पैदा हो जाती है। मीडिया को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए और ऐसे मुद्दों को बढ़ावा देने से बचना चाहिए, जो समाज में वैमनस्यता को बढ़ाते हैं।
प्रजापति श्योनाथ सिंह “शिव” का कहना है कि मात्र वोट की राजनीति ने समाज को छिन्न-भिन्न कर दिया है। ऐसे कृत्य आम जनता के हित में नहीं होते। स्वर्ण लता सोन का मानना है कि हमें धर्म और जाति की संकीर्णता से ऊपर उठकर केवल देश के बारे में सोचना चाहिए। आपसी भाईचारे और प्रेम से रहने पर ही देश का भविष्य उज्जवल होगा।
दिव्या भट्ट ‘स्वयं’ कहती हैं कि धर्म की सटीक जानकारी के बिना अनर्गल टिप्पणियाँ करना न केवल धर्म का अपमान है, बल्कि यह देश की गरिमा को भी ठेस पहुँचाता है। जात-पात पर होने वाले कटाक्ष समाज के आर्थिक और बौद्धिक विकास में बाधा उत्पन्न करते हैं।
नीरजा शर्मा के अनुसार, कोई भी राजनैतिक या सामाजिक विषय धर्म और जाति के नाम पर कटाक्ष का कारण नहीं बनना चाहिए। हमारे हर प्रयास और हर कदम को देश को उन्नति की राह पर ले जाने के लिए होना चाहिए। वीना टन्डन ‘पुष्करा’ ने कहा कि धर्म और जाति के नाम पर कटाक्ष और भेदभाव से देश कमजोर होता है। इसे रोकने के लिए हमें एकजुट होकर कार्य करना होगा।
अनु तोमर ‘अग्रजा’ लिखती हैं कि नव पीढ़ी को एक-दूसरे की अच्छाइयों को अपनाना चाहिए और नकारात्मकता को मिटाकर एक नए अध्याय की शुरुआत करनी चाहिए। सुरेश चंद्र जोशी का कहना है कि “ईश्वर ने हमें एक बनाया है, फिर जाति और धर्म के नाम पर आपस में लड़ाई क्यों?” यह समाज में भेदभाव और कलह को जन्म देता है।
डॉ. पूनम सिंह का मानना है कि हमें भ्रमित प्रचार और भ्रामक सूचनाओं के बहकावे में आने के बजाय तर्कसंगत निर्णय लेने में विश्वास रखना चाहिए। अशोक दोशी की काव्यात्मक लेखनी कहती है
“मजहब के नाम से आपस में, कितने दूर हुए, बिन बात पर लड़ जाने को तैयार हुए, नफरत का न कोई नामो-निशां होता,
तो कितना अच्छा होता।” सुनील भारती ‘आज़ाद’ कहते हैं कि धर्म और जाति के आधार पर विभाजन करने के बजाय हमें शिक्षा, विज्ञान, तकनीक और आर्थिक समृद्धि पर ध्यान देना चाहिए। यदि हम सशक्त और समृद्ध भारत की कल्पना करते हैं, तो समानता, सौहार्द और सहिष्णुता को अपनाना आवश्यक है। नीरजा शर्मा ‘अवनि’, नीतू रवि गर्ग और सुनील भारती आज़ाद की परिकल्पना और रचनात्मकता से आयोजन का कोलाज और सम्मान पत्र तैयार किए गए| डॉ दवीना अमर ठकराल ‘देविका’ का मानना है कि धर्म, भाषा और सांस्कृतिक विभिन्नताओं के बावजूद हम सभी मानवों का एक ही आदिकालिक मूल है। इस प्रकार हमें इस मूल को समझकर आपसी समझभाव और सहभागिता को बढ़ावा देना चाहिए। धर्म और सांस्कृतिक भेदों के बावजूद हम सभी को एक दूसरे का समर्थन करना चाहिए ताकि हम सभी मिलकर एक सशक्त, समृद्ध, और संयुक्त समाज बना सकें और तभी मानवता के अग्रदूत के रूप में देखा जा सकता है। उन्मुक्त उड़ान मंच सभी लेखकों और चिंतकों को इस विषय पर अपने विचार किए जिससे एक समरस, सशक्त और उन्नत भारत के निर्माण में योगदान हो सके।