ओ३म्
*शिवरात्रि बनी बोधरात्रि*
शोध परख लेख
सत्युग के *धार्मिक,विद्वान,बीर,वैज्ञानिक,आयुर्वेद के विशेषज्ञ,निराकार ओ३म् के उपासक महायोगी भगवान शंकर* महर्षि *अग्निष्वात* के अलौकिक पुत्र थे। जिस रात्रि इस बालक का *रात्रि में हुआ था* उस रात्रि में समस्त सतयुग निवासी आर्य पुत्रों ने प्रसन्नता पूर्वक मंगल उत्सव मनाया वही मंगल उत्सव इतिहास में *शिवरात्रि* के रुप में संपूर्ण आर्यावर्त में आज भी मनाया जाता है। *महर्षि अग्निष्वात* सत्य-सनातन वैदिक संस्कृति के अप्रतिम पुरोधा थे उन्होंने बालक का नामकरण संस्कार *वैदिक रीति* से सम्पन्न किया और वेद मंत्रों से ही उसके नाम का चयन कर *ब्रह्मचारी शंकर* नाम रखा। जिस मंत्र से उन्होंने अपने पुत्र का नाम रखा वह वेद मंत्र *यजुर्वेद अध्याय १६/४१ का है।* जिसका परिचय इस प्रकार है!
*ओ३म् नम:शम्भवाय च मयोभवाय च नम: शंकराय च मयस्कराय च नम: शिवाय च शिवतराय च।।*
मंत्र का पदार्थ
नम: = नमस्कार हो! शम्भवाय = सुख स्वरुप ईश्वर के लिए।
च= ओर
मयोभवाय = सब सुखों के देने वाले के लिए।
च= और
नम:= नमस्कार हो
शंकराय = धर्म युक्त कर्मों के कर्ता को
च= और
मयस्कराय = धर्मयुक्त कर्मों में नियुक्त करने के लिए
च= और
नम:= नमस्कार हो ।
शिवाय = मंगल स्वरुप ईश्वर के लिए
च= और शिवतराय = मोक्ष सुख दाता के लिए
च = ओर ।
इस प्रकार इस पावन मंत्र से *महर्षि अग्निष्वात* ने अपने पुत्र का नामकरण संस्कार किया उसका परिणाम यह हुआ कि आगे चलकर उस ब्रह्मचारी शंकर में मंत्र के अन्य गुण भी आनू लगे और वो संसार में *शिव,शंकर,कैलाशपति,महादेव,भगवान* नामों से यश को प्राप्त हुआ!
*कुछ नहीं सीखा*
हम लोग शिवरात्रि में भूखा भी रहते हैं।रात में शिवलिंग पूजा भी करते हैं मगर अपने बालक/बालिकाओं का *नामकरण संस्कार* करते ही नहीं अपने मन से *गोलू,गोल्डी,भोलू,शालू आदि* अवैदिक व निरर्थक नाम रखते हैं।फिर शिवरात्रि मनाने का क्या मतलब!
*शिवरात्रि बनी बोधरात्रि*
प्यारे सज्जनो! महान योगी शंकर की यह शिवरात्रि धीरे-धीरे *ज्ञान के अभाव में* पाखंड का रुप धारण करने लगी। हिंदू लोग इस महान एतिहासिक पर्व को भांग, गांजा,चरस,धतूरा पीकर दूषित करने लगे और भगवान शंकर को भी बदनाम करने लगे कि वो भी भांग पीते थे।महान योगी,महामानव शंकर को ईश्वर का अवतार मानने लगे।उनकी मूर्ति बनाकर उनकी पूजा करने लगे! दैव संयोग से गुजरात प्रांत के टंकारा नामक ग्राम में एक बालक का जन्म श्रीमान् कर्षंन तिवारी के घर में हुआ।नाम पड़ा *मूल शंकर*। मूल शंकर के पिताजी *औदीच्य ब्राह्मण थे और कट्टर शंकर के पुजारी थे*। उन्होने अपने छोटे से बालक को शिवरात्रि का व्रत रखने का कड़ा आदेश दिया।आज्ञाकारी पुत्र ने दिन व रात्रि भूखे रखकर आज्ञा निभाई ! मगर उसे भगवान शंकर के दर्शन नहीं हुए।तब पिता ओर पुत्र के बीच में *एक गंभीर संवाद हुआ* इस संवाद को यदि आपने बुद्धिपूर्वक पढ़ लिया तो आपकी *शिवरात्रि भी बोधरात्रि* हो जायेगी!
पिता-पुत्र संवाद
*[ पुत्र ]* पिताश्री शिवरात्रि का व्रत क्यों रखा जाता है?
*[ पिता ]* पुत्र! जो शिवरात्रि का व्रत रखता हे उसे भगवान शंकर दर्शन देते हैं और उसकी मनोकामना पूरी होती है।
यह सुनकर पुत्र ने पिता के चरण स्पर्श किए और मन में भगवान शंकर के दर्शन की इच्चा रखकर नन्हा बालक मूल शंकर दिन भर शिव मंदिर में बैठा रहा। रुद्राभिषेक जो पिता कर रहे थे उसे श्रद्धापूर्वक देखता रहा! रात्रि में पूजा पाठ संपन्न हुआ।सबने आरती की। प्रसाद लिया और अपने-अपने घर चले गये। मूल शंकर भी पिता के साथ घर आ गया! घर आकर उसने पिता से संवाद किया! आजकल के बालक -बालिकायें माता पिता से ईश्वर के बारे में पूछते नहीं और माता पिता कुछ ईश्वर के बारे में बताते भी नहीं।आजकल तो माता पिता कहते हैं बच्चों से *खाओ-पीओ-ऐश* करो! कुछ माता पिता बताते भी हैं तो सही ज्ञान नहीं दे पाते! खैर मूल शंकर ने पूछा!
*[ पुत्र ]* पिताश्री! आपने कहा था भगवान शंकर दर्शन देंगे! मगर पूजा समाप्त हो ग ई ।लोग प्रसाद लेकर घर चले गये सो गये! मगर भगवान शंकर ने दर्शन नहीं दिए ?
*[ पिता ]* पुत्र! भगवान शंकर मध्य रात्रि में दर्शन देते हैं! पिता ने सोचा होगा बच्चा ही है।दिन भर का भूखा है।थक गया होगा थोड़ी देर में सो जायेगा। सुबह पूछेगा तो कह दुंगा।भगवान आये तो थे मगर तुम सो गये थे।मामला शांत हो जायेगा। मगर!
*मेरे मन कुछ और है!*
*विधना के कुछ और!!*
*[ पुत्र]* पुत्र मूल शंकर सोचने लगा जब सारा दिन भूखा निकल गया तो थोड़ी देर और सही। भगवान शंकर से मिलना जरूरी है।यस सोचकर चला गया अपने पिता के बनाये शिव मंदिर में और *शिव लिंग* के सामने आंख खोलकर बैठ गया! अभी भगवान शंकर आयेंगे उनसे बात करुंगा। मगर था तो बालक ही ।दिन भर का भूखा भी।नींद आने लगी।तभी सोचता है नींथ आ ग ई तो भगवान आकर चले जायेंगे! तुरंत उठा मंदिर में कलश के जल से आंखों में छींटे मारे! मुख प्रक्षालन किया और नींद भगा दी! मध्य रात्रि हुई।भगवान दर्शन देने नहीं आये!
अचानक घटना घटी। मंदिर के कोने से चूहा आया। जिस शिवलिंग को हर मनुष्य छू भी नहीं सकता भक्त के अलावा वह चूहा शिव लिंग पर चढ़ा और शिवजी के ऊपर चले प्रसाद को खाने लगा! और मल-मूत्र भी किया!
*मूल शंकर ने सोचा*
(१) जो शंकर महाकाल है उसके शिर पर कोई कैंसे चढ़ सकता है?
(२) शिवजी पर चढ़े प्रसाद को केवल गोसाई ही खा सकता है?
(३) शिवलिंग पर वीष्ठा करने पर भी कोई हचचल नहीं तो इतना बड़ा संसार को कैंसे चलाता है।
इन विचारों को करते ही निराश मन से घर लौट आया अपनी मां से पूछा मातुश्री पिताजी कहां हैं ? मुझे उनसे कुछ प्रश्न करने हैं?
*[ मातुश्री ]* पुत्र रात बहुत हो चुकी है।पिताश्री सोये हैं ।तुमने अभी कुछ खाया नहीं है।भोजन ग्रहण करो! कल प्रात: पिता श्री से पूछना! आज्ञाकारी पुत्र ने भैजन किया,मगर मन अशांत था। प्रात: उठते ही सीधे पिताश्री से मिलने पहुंच गया।
*[ पुत्र मूल शंकर]* पिता श्री आपने कहा था मध्य रात्रि में भगवान शंकर दर्शन देंगे! मगर न तो भगवान मिले।अलग से चूहा आया! भगवान के सिर पर बिना अभिवादन किए उद्दडंता पूर्वक चढ़ा।प्रसाद खाया।अंत में *मल-मूत्र* करके उछल-कूद करके चला गया!
*[ पिताश्री ]* शिवजी के उपासक,भू-राजस्व अधिकारी,विद्वान,बलवान पिता आदरणीय *कर्षन तिवारी जी* ने पुत्र की बातें सुनी तो उन्हें पशीना छूटने लगा छोटे से बालक के मुख से कठिन प्रश्न सुनकर। जैंसे-तैंसे अपने को संभाला फिर एक झूठ बोलकर पुत्र को चुप कराने की सोची! जैंसे आजकल के कथा वाचक मन गढ़ंत बातें कहकर अपने भोले-भाले भक्तों का मुख बंद करते रहते हैं। उसी प्रकार श्रीमान कर्षन तिवारी जी बोले पुत्र ! भगवान शंकर तो कैलाश पर्वत पर रहते हैं । घनघोर तप करना पड़ता हे।आप अभी बहुत छोटे हो।अपना मन पढ़ने-लिखने में लगाओ!
*[ पुत्र ]* मन ही मन सोचने लगा! अगर ऐंसी बात है तो *कैलाश क्या! पूरा भू-मंडल छान मारुंगा!* यह सोचकर मौन हो गया। और एक दिन परिवार को बताये बिना आधी रात्रि में *महात्मा बुद्ध* की तरह घर छोड़कर निकल पड़ा भगवान शिव की तलाश में। पर्वत,नदी,जंगल छान मारे।भूख-प्यास ,सर्दी-गर्मी,मान-अपमान,सुख-दुख सहते गया! मठ-मंदिर,शंकराचार्यों, जगद गुरुओं,मठाधीशों से पूछा मगर कोई भी भगवान शंकर के दर्शन नहीं करा सके।सभी अपनी-अपनी *धर्म की दुकान में मठाधीश बनकर मूर्तियों को पूजकर प्रसाद खाकर,चेले-चेलियां* बनाकर मस्त रहते थे। अंत भगवान की प्रेरणा हुई। १७५ वर्षीय साधु पूर्णानंद सरस्वती ने कहा अगर भगवान शंकर को जानना है तो उसके लिए *सत्य सनातन वेदों* कै पड़ना होगा। इस समय मथुरा में *प्रज्ञाचक्षु बिरजानंद सरस्वती* ही एक मात्र विद्वान वेदों के हैं उनके पास जाकर पढ़ो!
गुरु विरजानंद जी ने बताया जिस भगवान शंकर को तुम ढूंड रहो हो वो *कैलाश पर्वत* में नहीं मन मंदिर में रहता है।वो साकार नहीं निराकार है। उसका मुख्य नाम *ओ३म्* है! वह केवल हिंदुओं का भगवान नहीं *वह हिंदु,मुसलमान,सिक्ख,ईसाई,पशु-पक्षी कीट पतंग सबका भगवान* है!
तब महर्षि देव दयानंद सरस्वती बनकर उन्होने लोगों को *महात्मा शंकर व कण-कण में व्यापक निराकार शंकर* का अंतर समझाकर शिवरात्रि के मर्म को इस प्रकार समझाया! आप भी इस मर्म कै समझ कर *महात्मा शंकर व निराकर शंकर के मर्म* कै समझें यही अभिलाषा है!
*अथ शंकर रहस्य कथा*
शिवरात्रि क्या
शिवरात्रि लौकिक व्यवहार में *तत्पुरुष समास* है।जिसका अर्थ है ! *शिव की रात्रि*! शिव कौन है! जिस की रात्रि शिव रात्रि हो!
*रात्रि क्या है?*
रा *दानार्थक धातु* से रात्रि शब्द बनता है। तात्पर्य हुआ कि जो सुख प्रदान करती है वह रात्रि है। इस प्रकार जो रात्रि आनंद दायिनी है वो शिवरात्रि है।
*कैलाश क्या हे?*
क नाम स है *ब्रह्म* का। (कस्मै देवाय हविषा विधेम,यजुर्वेद ) इस प्रकार क माने *ब्रह्म या जल* जो भी समाधिस्थ योगी होते हैं वो *ब्रह्म जल* में ही मग्न रहते हैं।इ प्रकार परमानंद की प्राप्ति होने से वह सदा कैलाश में यानि *ब्रह्म में निमग्न* रहता है। यही उसका कैलाश वास है।
*पर्वत क्या है?*
पर्वत दृढ़ता का प्रतीक है। साधक पर्वत की भांति अपने व्रत में अडिग रहता है।
*त्रिनेत्र क्या है?*
ज्ञान चक्षु ही त्रिनेत्र है।सबकी भृकुटि में वह ज्ञान चक्षु हे।
* त्रिशूल क्या है!*
त्रि माने तीन। काम,क्रोध,मोह ये त्रिशूल हैं।जिन पर मगवान शंकर का पूर्ण निय़त्रण था।
*डमरू क्या है?*
डमरू संस्कृत के *दमरु* का अपभ्रंश है।ये शब्दों से बना है। दम+रु । दम = दमन करना रु= माने ध्वनि।अर्थात् दमन संयम रुपी ध्वनि व्यक्त होती है।यानि शंकर महान संयमी हैं।
*गंगा क्या है?*
शिव की जटाओं में गंगा है। गंगा यानि ज्ञान गंगा।शिव महान ज्ञानी थे। *गंगा जी* का दूसरा अर्थ है। *गं + ग+अज+ई = गंगा जी* गं= जाना,ग =आकाश यानि हृदयाकाश, अज= जन्म रहित,ई= ईश्वर!
अर्थात् हे जीव! तू जन्म रहित है।अत: सर्व व्यापक ईश्वर जो हृदयाकाश में रहता है।मिलता है उसकी ओर जा। भगवान शंकर हमेशा हृदयाकाश में समाधिस्थ रहते थे!
* चंद्रमां क्या है?*
शिव के सिर पर अर्ध चंद्रमा है।यह चंद्रमा आनंद,आशा,व सोहार्द का प्रतीक है।जो पूर्णिमा के चंद्रमा से अधिक प्रिय व सौम्य है। शिव जी में ये गुण विद्यमान थे।
*विषधर सर्प*
शिव के शरीर में विषधर सर्प लिपटे हैं।ये सर्प अंतर्विकार हैं।काम,क्रोध,लोभ,मोह इनके नाम हैं।जिन्हें शिवजी ने अंत:करण से बाहर फेंका है। अनासक्त भाव से रहते हैं।
*नीलकंठ क्या है?*
लोगों ने कहा कि उन्होंने एक बार विषपान किया मगर उसे कंठ में ही रोक दिया।भीतर नहीं जाने दिया। ये बात विज्ञान के बिपरीत व सृष्टि नियमों के विपरीत है सृष्टि के नियम परमात्मा पर भी लागू होते हैं। *सत्यता* यह है कि *जो मान-अपमान,निंदा,चुगली को गले से नीचे नहीं उतारता। किसी की कटुता कै हृदय से नहीं लगाता वही नीलकंठ है।ये गुण महायोगी शिव में भी थे।
*मुंड माला क्या है?*
मुंडमाला धारण करने का मतलब है कि उनके अनेक जन्म हो चुके थे।वो हमको बता रहे हैं जो *योगी* नहीं होगा उसका फिर *पुनर्जन्म* होगा!
*शरीर पर भस्म*
भस्म से वरीर में *एंटी वायरस* नहीं आते। ठंड-गर्मी परेशान नहीं करती।
*नांदी/वृषभ क्या है?*
नांदी *नदिया नाद* का अपभ्रंश है। नाद का अर्थ होता है ध्वनि।सर्वश्रेष्ठ ध्वनि ओंकार है। शिवजी इसी *ओ३म् ध्वनि पर* हमेशा सवार थे। *वृषभ* कहते हैं इस प्रकरण में बैल को।उत्तम गौ-वंश को चलाने के लिए उच्चकोटि के वृषभों का संरक्षण जरूरी है। दूषरा अर्थ है *वर्षणात्* यानि सुखों की वर्षा करने वाले जो *ओ३म् की नाद* में मस्त रहते है वो शंकर समस्त देश कै भी मस्त रखते हैं।
*पार्वती क्या है?*
पर्वत की पुत्री को पार्वती कहते हैं।इस प्रकार पर्वत पर उत्पन्न होने वाली औषधियां ही पार्वती है। यदि सबकी धर्म पत्नी औषधि बनकर पति के साथ रहे तो *पत्नी का कल्याण होगा और पति भी शिव हो जायेगा*।
इसी प्रकार भांग,धतूरा की उच्च कोटि की औषधियां भगवान शंकर जानते थे।मगर लोगों ने उनको अज्ञानता से नशेड़ी बना डाला!
* *दयानंद हैं मूल शंकर*
प्यारे धर्म प्रेमी सज्जनो! ये बातें हमें महर्षि देव दयानंद ने सच्चे शिव को पहचानने के बाद बताई।और यह भी बताया कि *शकंर व शिव दो* हैं। *एक हिमालय के राजा,महात्मा योगी शंकर ओर दूसरा सबके हृदय में रहने वाले निराकार शिव व शंकर* इसी निराकार शिव की हृदय में ध्यान लगाने से *ओ३म् नम:शिवाय* कहना सार्थक होगा। इस ज्ञान को देने के कारण ही महर्षि दयानंद जी को *मूल शंकर* कहा जाता है। और जहां *एक और हम शिवरात्रि मनाते हैं वहीं दूसरी और बोधरात्रि* मनाकर ऋषि ऋण से ऊऋण होते हैं।आप सबको सपरिवार *शिवरात्रि व बोधरात्रि* की हार्दिक शुभ कामनाएं।
आचार्य सुरेश जोशी।
*वैदिक प्रवक्ता*
आर्यावर्त साधना सदन
बाराबंकी उत्तर प्रदेश।