अनुराग लक्ष्य, 3 नवंबर
सलीम बस्तवी अज़ीज़ी
मुम्बई संवाददाता ।
,, शब ए पूनम की तरह काश यह महफिल होती
ज़िंदगी और भी खुशरंग हो जाती सबकी
ज़र्रा ज़र्रा भी चमक उठता सारे आलम का
शायरी और भी खुशरंग हो जाती सबकी,,
पूनम जी के सम्मान में आज जब यह शेर मैने कहा तो मुझे रूहानी खुशी भी हुई, और फख्र भी। क्योंकि कितने खुशकिस्मत हैं वोह लोग जो ऊंची ऊंची उड़ानों की तमन्नाओं को अपने दिलों में नहीं बसाते। ज़िंदगी को ज़िंदगी समझते हैं और हालात का रुख जिस तरफ हो जाए, चुप चाप मूड जाते हैं। फिर सारा सफर तय कर के अपनी मंज़िल पर पहुंच जाते हैं, और जब ख्वाहिशों की गुलामी से आज़ाद होते हैं तो रंगीन बहारें खुद बखुद उनके दामन को सच्ची खुशियों से भर देती हैं।
आज एक ऐसी ही खूबसूरत शायरा और उत्कृष्ट गायिका पूनम विश्वकर्मा की ग़ज़लों को लेकर हाज़िर हो रहा हूं, जिसे पढ़कर आप को बेहद खुशी होगी। प्रस्तुत हैं आज इनके कुछ कलाम,,,
1/ जिसे मैने चाहा था हद से गुज़रके,
मैं खुद में उभर आई उसमें उतरके ।
2/ थी उम्मीद जिससे कि ज़ाहिर करेगा,
रखा है उसी ने मुझे राज़ कर के ।
3/ चढ़ा दे मुहब्बत की सूली पे चाहे,
मगर ज़िंदगी भी दे बाहों में भर के ।
4/ बुझेगी तभी आग तेरी मुहब्बत,
मुझे जब जलाएगी मुझमें ठहरके।
5/ अगर वोह करे मरते दम तक का वादा,
तो वादा निभाऊंगी उसका मैं मरके।
इसी के साथ एक दूसरी ग़ज़ल के कुछ अशआर भी आपकी समा अतों के हवाले,,,
1/ रखदूंगी हथेली पे खुशी से निकाल कर,
लेकिन वोह जान लेने को तैयार भी तो हो ।
2/ यह रूह बुझती नहीं है जला के जिस्म मेरा,
करेगी खाक यह शायद जमाल की हर लाश ।
3/ नेह के फूल कुछ खिलाएं चल,
ज़िंदगी अपनी भी बनाएं चल।
4/ जिनके बिस्तर लगे हैं रस्ते पर,
उनको कंबल ओढ़ा के आएं चल।
5 / कुछ खुशी की मिठाइयां बांटें,
लब पे मुस्कान कुछ खिलाएं चल।