सतगुरु तुम्हें प्रणाम मेरा।
गुरुवर तुम्हें प्रणाम मेरा।
जीवन रूपी नैया के,
तुम ही हो खेवनहारे।
कौन मुझे भटकाएगा,
क्योंकि तुम हो रखवारे।
शीश झुकाऊं चरणों में,
यहीं पे चारों धाम मेरा।
सतगुरु तुम्हें प्रणाम मेरा।
गुरुवर,,,,,
साथ जो तुम मेरे सतगुरु,
और न चाहूं साथ कोई।
कृपा आप की जिसपर पर,
फिर रहता कहाँ अनाथ कोई।
चाह नहीं कोई बाकी अब,
पूर्ण हुआ सब काम मेरा।
सतगुरु तुम्हें प्रणाम मेरा।
गुरुवर,,,,,
चरण तुम्हारे पखारू मैं।
अपने असुवन धार से।
करता हूँ स्वागत तेरा,
सुंदर मोतियन हार से।
अपलक तुम्हें निहारूँ मैं,
हृदय में रख लो नाम मेरा।
सतगुरु तुम्हें प्रणाम मेरा।
गुरुवर,,,।
ज्योतिमा शुक्ला ‘रश्मि’