गुरु पूर्णिमा का सच – आचार्य सुरेश जोशी

🔥 *ओ३म्* 🔥
🥗 *गुरु पूर्णिमा का सच*🥗
सत्य सनातन वैदिक संस्कृति में *गुरु शब्द* गरिमापूर्ण अर्थ से प्रतिभासित किया जाता है। 🌻 *गु + रु = गुरु यानी गु माने अंधकार और रु माने प्रकाश अर्थात् जो हमें अविद्या, अधंकार, अज्ञान से प्रकाश मोक्ष , ईश्वर, अध्यात्म में प्रवेश कराये उसे गुरु कहते हैं*🌻
🌋 *गृ शब्दे इस धातु से गुरु शब्द*🌋 बना है। जो सत्य धर्म प्रतिपादक है वो गुरु है। *अथवा* जो वीर्य दान से लेके भोजनादि कराके पालन करता है इससे पिता को व जो सत्योपदेश से हृदय के अज्ञान रुपी अंधकार को मिटा देवे उसको भी गुरु कहते हैं। गुरु के संबंध में यह परिभाषा महर्षि देव दयानंद सरस्वती जी की है!
🪷 सत्य जिज्ञासा 🪷
*गुरु शब्द की उपाधि किस -किस को शास्त्रों ने दी है ?*
🌸 *उत्कृष्ट समाधान*🌸
आपने बहुत ही अच्छा प्रश्न पूछा है। इससे समाज में जो *गुरुओं के नाम पर गुरुडम वाद* फैला है उसका पर्दाफाश होगा।लोग पाखंडी गुरु से बचकर *सच्चे गुरुओं की शरण* में जाकर अपना लोक परलोक दोनों सुधार सकते हैं। शास्त्रों में *मुख्य गुरु ईश्वर को ही माना है* जिसकी चर्चा हम अंत में करेंगे।उसके अतिरिक्त कौन से लोग *सहायक गुरु* हैं उनकी चर्चा हम प्रस्तुत करते हैं!
🌹 *प्रथम गुरु माताश्री*🌹
मनुष्य जब धरती मां की गोद में जन्म लेता है तो उसे गोद में उठाकर स्नान कराकर स्तन पान कराकर जीवन दान देने वाली होने से माता को प्रथम गुरु कहा गया है!
*गुरोहि वचनं प्राज्ञ प्राहुर्धम्य धर्मज्ञ सत्तम।*
*गुरुणां चैव सर्वेषां माता परमेको गुरु:।*
अर्थात् संसार में जितने भी वन्दनीय गुरु हैं उन सबकी अपेक्षा माता परम गुरु होने के कारण वंदनीय है।यह महर्षि मनु स्मृति का वचन है।
दश आचार्यों से एक *उपाध्याय= कर्मकांड का मर्मज्ञ विद्वान* बड़ा है। *सौ आचार्यों से एक पिता* बड़ा है और *हजार पिताओं से योग्यता में एक माता* बड़ी है।
🌹 *द्वितीय गुरु पिताश्री*🌹
*य: पाति से पिता* अर्थात् जो संतानों का अन्न और सत्कार से रक्षक वा जनक है उसे पिता कहते हैं। महर्षि मनु के अनुसार *पिता मूर्ति प्रजापति* अर्थात् पिता प्रजापति की मूर्ति है। जैसे परमात्मा सारे संसार को उत्पन्न करने से प्रजापति है वैसे पिता अपने परिवार को पैदा करने से परिवार का प्रजापति है।
स्वयं *मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम पिता की महिमा का वर्णन अपनी धर्मपत्नी माता सीता* से इस प्रकार करते हैं।
*न सत्यं दानमानौ वा यज्ञो वाप्याप्तदक्षिण:।*
*तथा बलकरा: बीते यथा सेवा पितृर्मता।।*
अर्थात् हे सीते! न सत्यं,न दान, न यज्ञ, न पर्याप्त दक्षिणा वाले यज्ञ ही इतने बलवान हैं जितनी की पिता सेवा। यह श्लोक *महर्षि बाल्मीकि रामायण अयोध्या काण्ड सर्ग ३०/३५ का है ।*

🌹 *तृतीय गुरु आचार्य श्री*🌹
माता से जीवात्मा को स्थूल शरीर मिलता है वो उस शरीर का लालन-पालन करता है।पिता उसके विकास की आधार शिला *अन्न+जल+वस्त्र+भोजन+धन व सुविधाओं* को देकर रखता है। मगर आचार्य उसके अंदर सुप्त आत्मा को *विद्या+तप+संस्कार* से जगाकर उसे मानव से महामानव बनाता है इसीलिए वो तीसरा गुरु है।
*य:आचारं ग्राह्यति,सर्वां विद्या बोधयति से आचार्य:*
अर्थात् जो सत्य आचार का ग्रहण कराने हारा और सब विद्याओं की प्राप्ति का हेतु होके सब विद्या प्राप्त कराता है उसे आचार्य कहते हैं। *अथवा* जो श्रेष्ठ आचार को ग्रहण कराके सब विद्याओं को पढ़ा देवे उसको तीसरा गुरु *आचार्य* कहते हैं।
जो मनुष्य चाहे नर हो या नारी इन तीन गुरुओं की उपेक्षा करके *घर -परिवार-समाज के कर्तव्य कर्मों को त्याग कर भेष बदलकर कर,भीख मांगकर,ढंग विद्या, पाखंड फैलाकर अपने को खुद ही धर्म गुरु बनाकर गुरु चेला का धंधा चला रहे हैं। चेलियां बना रहे हैं ऐसे गुरु और शिष्य दोनों घोर नरक में जाते हैं और समाज को भी दिग्भ्रमित करते हैं इनसे बचकर उपरोक्त गुण वाले माता-पिता को ही गुरु मानकर उनकी अन्न,धन, वस्त्र,सेवा व आज्ञा मानना चाहिए।इसी से धर्म व संस्कृति फलती फूलती है!*
🪷 सत्य जिज्ञासा 🪷
क्या ये तीन ही गुरु पर्याप्त हैं? या कोई और गुरु भी हैं?
🌸 *उत्कृष्ट समाधान*🌸
जी हां। संसार का व्यवहार उत्तम रीति से चलाने व आत्म ज्ञान को प्राप्त कराने हेतु *योग्य माता। योग्य पिता और योग्य आचार्य पर्याप्त हैं।* मगर जिसने यह संसार बनाया। जिसने हमें माता-पिता आचार्य दिये बिना उसकी *स्तुति -प्रार्थना उपासना किये कल्याण असंभव है। अतः इन तीनों के बाद एक गुरु और है वो हम सबका गुरु है। हमारे माता-पिता आचार्य का भी गुरु है।उस परं गुरु का नाम *ईश्वर, परमात्मा, ब्रह्म आदि* है।
🪷 सत्य जिज्ञासा 🪷
*परमात्मा गुरुओं का भी गुरु है इसका क्या प्रमाण है?*
🌸 उत्कृष्ट समाधान 🌸
इसका भी प्रमाण है। यहां पर यह विस्तार भय से बचने के लिए एक प्रमाण महर्षि पतंजलि के *योग दर्शन* का देते हैं जो आपकी शंका का समूह समाधान कर देगा।
*स एष पूर्वेषामपि गुरु: कालेनानवच्छेदात्।योग१/२६*
अर्थात् वह ईश्वर भूत -भविष्यत् -वर्तमान में उत्पन्न होने वाले सब गुरुओं का गुरु = विद्या देने वाला है।काल के द्वारा मृत्यु को प्राप्त नहीं होता परमात्मा।
मतलब आज तक जितने भी शरीर धारी गुरु हुए हैं परमात्मा उनका भी गुरु है।आज जितने भी शरीर धारी गुरु वर्तमान में हैं परमात्मा उनका भी गुरु है और भविष्य में जितने भी गुरु होंगे परमात्मा उनका भी गुरु रहेगा।ये जितने भी *शरीर धारी असली,नकली,फसली और कतली गुरु* है परमात्मा उन सब गुरुओं के कर्मों को देखता है इनमें से जो असली गुरु है उनको परमात्मा मोक्ष देगा और जो नकली,कतली,फसली गुरु है उनको कठोर दंड देगा।
🪷 *सत्य जिज्ञासा*🪷
कुछ लोगों की मान्यता है कि *शरीरधारी गुरु ईश्वर से भी बड़ा है?* क्योंकि वह ईश्वर की प्राप्ति कराता है। यदि वह न हो तो साधक ईश्वर तक नहीं पहुंच पायेगा? सत्य क्या है?
🌸 *उत्कृष्ट समाधान*🌸
आपने पूछा सत्य क्या है? विडंबना यही है कि लोग *सत्य जानना चाहते ही नहीं* यदि सत्य जानने की इच्छा हो तो गुरुडम वाद शीघ्र समाप्त हो जायेगा!
जरा विचार कीजिए ठंडे दिमाग से *यदि देहधारी गुरु को ईश्वर 🍁 शरीर, इंद्रिय,आदि साधन न दे और वेदों का ज्ञान न दे तो वह शरीर धारी गुरु विद्वान हो ही नहीं सकता।बिना विद्या के औरों का गुरु बन ही नहीं सकता। सर्व प्रथम ईश्वर से विद्या पढ़कर पश्चात् दूसरों को पढ़ाता है उसके बाद ही तो उसकी गुरु की संज्ञा होती है। ईश्वर शरीर धारी गुरु ईश्वर से हमेशा छोटा ही रहेगा। 🥗 गुरु का सम्मान करना सर्वोत्तम कार्य है परन्तु उसको ईश्वर से बड़ा मानना अनुचित एवं हानिकर है।*
🪷 सत्य जिज्ञासा 🪷
*स्त्रियों का गुरु कौन हो सकता है?*
🌸 उत्कृष्ट समाधान 🌸
*शास्त्रों में कहा गया है कि स्त्रियों का गुरु तो उसका पति ही है* इसके प्रमाण देखें !
*उपचर्य: स्त्रिया साध्व्या सततं देववत्पति।*
अर्थात् साध्वी देवी की यही दिनचर्या हो कि सूर्य जैसे पति की पूजा किया करे!यह प्रमाण मनु स्मृति के अध्याय ५/१५४ का है।
*स्त्रीणामाचार्य स्वभावानां परमं देवतं पति:*
महर्षि अत्रि की पत्नी माता अनसूया माता सीता से कहती हैं, हे सीते! *आर्य स्वभाव वाली* स्त्रियों के लिए उनका पति ही परम देवता है।यह प्रमाण अयोध्या काण्ड सर्ग ११७/१४ का है।
बन जाने का अनुरोध करते समय माता सीता ने श्रीराम जी से कहा कि *विदितं तु ममाप्येतद्यथा नार्या पतिर्गुरु:* अर्थात् हे आर्य पुत्र! मैं तो यही जानती हूं कि नारी का गुरु पति ही है।
अपवाद के कारण यदि पति में गुरु बनने की योग्यता न हो तो *स्त्रियों को किसी विदुषी, तपस्विनी, धर्मात्मा, प्रतिष्ठित नारी को ही अपना गुरु* मानना चाहिए।
महर्षि दयानंद सरस्वती जी कहते थे पति लोग मुझसे जो सत्संग प्राप्त करते हैं वो घर जाकर इस बात को अपनी पत्नियों को बताया करें जिससे वो भी शास्त्र ज्ञान को प्राप्त कर सकें।इतना ही नहीं जैसे *पुरुषों के गुरुकुल में पुरुष आचार्य होते हैं वैसे ही स्त्रियों के भी गुरुकुल हों और उनमें स्त्रियां भी आचार्या हो ।*
काश हमारे देश की। *माता -बहनों व बेटियों* ने शास्त्रों की बात मान ली होती तो आज *साकार नारायण हरि* जैसे अज्ञानी गुरुओं का जन्म नहीं होता!
🏵️ *अंतिम प्रार्थना*🏵️
मित्रों यदि आपको *गुरु पूर्णिमा* का सत्य पता लग गया है तो आप इस लेख को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाना अपना कर्तव्य समझें जिससे। *अच्छे गुरुओं का सम्मान व वृद्धि हो और नकली, फसली,कतली गुरुओं* से समाज जागे और गुरुडम वाद का अंत हो।
📚 *गुरु पूर्णिमा का अर्थ*📚
जिस प्रकार पूर्णिमा का चंद्रमा *निर्मल-शीतल-शांत-पवित्र* होता है उसी प्रकार से जो विद्वान,संत, महात्मा *निर्मल -शीतल -शांत -पवित्र* हैं उन्हीं को गुरु बनावें।आप सबको गुरु पूर्णिमा के पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं 🍁
*आचार्य सुरेश जोशी*
वैदिक प्रवक्ता
आर्यावर्त साधना सदन पटेल नगर दशहराबाग बाराबंकी उत्तर प्रदेश ☎️ *7985414636*☎️

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