🌲 *ओ३म्* 🌲
*ओ३म् द्वा सुपर्णा सयुजा सखाया समानं वृक्षं परिषस्वजाते।*
*तयोरन्य: पिप्पलं स्वाद्वत्त्यनश्नन्नन्यो अभि चाकशीति ।।*
।। ऋग्वेद १/१६४/२०।।
🦚🦚 *मंत्रार्थ*🦚🦚
🌹 द्वौ सुपर्णौ = दो सुंदर पक्षी 🌹 सयुजौ = जो सहयोगी हैं। 🌹 सखायौ = और परस्पर मित्र हैं 🌹 समानम् वृक्षम् = एक ही वृक्ष के ऊपर 🌹 परि षस्वजाते = एक – दूसरे से लिपटे हुए स्थित हैं। 🌹 तयो: = इन दोनों में 🌹 अन्य: = एक 🌹 पिप्पलम् = इस वृक्ष के फल को 🌹 स्वादु अत्ति = मज़े से खाता है, 🌹 अन्य: = और दूसरा पक्षी 🌹 अन्य -अश्नन् = न खाता हुआ 🌹 अभि चाकशीति = अध्यक्षता का काम करता है।
🏵️ *मंत्र मीमांसा*🏵️
ईश्वर की *अद्भुत रचना* की झांकी इस मंत्र में देखने को मिलती है। इस रचना में *प्रमाण+गणित+ अलंकार* का अद्भुत संगम हैं।
पूरे ब्रह्मांड को *एक वृक्ष और दो पक्षियों* में समेट दिया है। वृक्ष का नाम है *प्रकृति* और दो पक्षी हैं *एक का नाम ईश्वर और दूसरे का नाम जीवात्मा* है। अब आपके मन में आ रहा होगा कि पक्षी की चौंच होती है।दो पंख होते हैं और एक पूंछ। इनका जीव व ईश्वर से क्या संबंध है?
यही रहस्य जो समझाती है उसी का नाम है 📚 ईश्वरीय वाणी वेद 📚
वैदिक संस्कृत में पक्षी कहते हैं *विद्वान* को। जीवात्मा और परमात्मा दोनों विद्वान हैं इसलिए पक्षी कहा। व्यवहार में भी आपने *पक्षी -विपक्ष विद्वान। । अब आगे की बात सुनें।यह जो ईश्वर है ये वृक्ष के ऊपर बैठकर नीचे वाले पक्षी जीवात्मा को देखता है सुनता है मगर स्वयं निर्लिप्त है और जीवात्मा इस प्रकृति के खट्टे-मीठे फलों को खाकर सुखी दुखी होता रहता है।इस प्रकार संसार को तीन सत्तायें चला रही है
एक सत्ता जो परमात्मा है वो संसार यानि *प्रकृति*रूपी वृक्ष को बना रही है जीवात्मा के लिए। दूसरी सत्ता जीव प्रकृति का भोग करती है और तीसरी सत्ता प्रकृति जो जीव की भोग्य वस्तु है। जीवात्मा को परमात्मा कहता है जैसा कर्म करेगा वैसा फल मिलेगा!यही है इस ब्रह्माण्ड का रहस्य।
आचार्य सुरेश जोशी
*वैदिक प्रवक्ता*