*ओ३म् *
💐 ईश्वरीय वाणी वेद 💐
*ओ३म् यो जागार तमृच:कामयंते यो जागार तमु सामानि यंति। यो जागार तमयं सोम आह तवाहमस्मि सख्ये न्योका।*
🌻 *मंत्र का पदार्थ*🌻
य: = जो मानव, जागार= जागता है,तम= उसको,ऋच: = ऋग्वेद के मंत्र चाहते हैं। य: = जो ,जागार = जागता है,तम = उसको , उ = ही , सामानि = सामवेद का ज्ञान प्राप्त होता है। य: = जो जागार = जागता है , तम् उसको ही , अयम् = यह। सोम = सोमादि ओषधिगण , आह = कहता है कि , अहम = में , न्योका: = नियत स्थान वाला , तव = तेरी , सख्ये = मैत्री के लिए बना हूं।
।। सामवेद २१/१
🌸 *मंत्र का भावार्थ*🌸
ज्ञान भक्ति व औषधि , मानव के श्रृंगार हैं।
आलस तज जो श्रम करें , तो कर दे भव से पार है।।
🌹 *मंत्र का सार तत्व*🌹
संसार में प्रत्येक मनुष्य को सुख -दुख का अनुभव होता है। सभी *दुख को छोड़ सुख के लिए प्रयत्न भी करते हैं* सुख के प्रति इच्छा दुःख के प्रति घृणा होने पर भी *न पूरा सुख मिला है न ही पूरा दुःख छूटा है।* इसके कारण बताते हुए सामवेद का यह मंत्र बता रहा *आलस्य,प्रमाद व विलासिता* इसलिए वेदमाता कहती है *जागो!*
बेला अमृत गया आलसी सो रहा बन अभागा ।साथी सारे जगे तू न जागा।।
यदि हम *आलस,प्रमाद व असफलता* के कारणों पर विचार करते हैं तो पता लगता है कि मानव की सारी शक्ति व सारा ज्ञान सीमित है। हमारे पास किसी भी लक्ष्य को प्राप्त करने के तीन ही साधन हैं। *शरीर मन और बुद्धि।* यदि इन तीनों में विकार आ गया तो *ज्ञान* में भी विकार आ जायेगा।जहा ज्ञान *उल्टा* होगा वहां फल भी *उल्टा* होगा। अतः प्रत्येक मानव का कर्तव्य है कि यथार्थ ज्ञान को प्राप्त करे, यथार्थ ज्ञान होता है *प्रमाणों* से प्रमाणों से प्राप्त ज्ञान ही *न्याय* कहाता है। संसार में हर आदमी चाहता है कि *मेरे साथ न्याय* हो अन्याय नहीं।तब वेद माता कहती हैं कि यदि न्याय चाहिए तो जागो! और जो। *न्यायकारी* परमात्मा है उसी की स्तुति, प्रार्थना व उपासना करो!अन्य की नहीं।
आचार्य सुरेश जोशी
*वेदिक प्रवक्ता*