एक गीत आरम्भ किया है…एक बंध है,
आपका आशीर्वाद मिले तो आगे पूरा करूंगी
तुमने जाना नहीं किन्तु मैं पास थी अपने आँचल में सारा गगन बांध कर,
बांसुरी में मिली राधिका की तरह पायलों में थी मीरा सा मन बांधकर।।
मन को गीता बनाकर के बैठी रही
न अधर पर लिया न सुनाया कभी,
राह तकती रही हर सहेली मेरी
तुम न आये न माखन चुराया कभी।
गा रही हूँ भले कुछ भी मैं आजकल कंठ ठहरा हुआ है भजन बाँध कर,
बांसुरी में मिली राधिका की तरह पायलों में थी मीरा सा मन बांधकर।।
-निधि मिश्रा