ज़िंदगी की तल्ख़ सच्चाइयों को बयां करती संजय पुराषार्थी की एक उत्कृष्ट रचना,,,,

  1. अनुराग लक्ष्य 27 मई
    सलीम बस्तवी अज़ीज़ी
    मुंबई संवाददाता ।
    सोचते सोचते
    इस निष्कर्ष पर
    आ गया हूँ मैं••••
    कि—
    अब कुछ नहीं बचा
    मेरे सोचने के लिए ll

बचपन में मिट्टी
खाने से लेकर
जर्जर बुढ़ापे की
यात्रा के मध्य
क्या कुछ नहीं दिया
देने वाले ने ll

सब कुछ सब कुछ
परीक्षा का तनाव
परिणाम ना आने तक
पास या फेल का तनाव
उच्च शिक्षा, बेहतर नौकरी
ऊँचा कुल
सुयोग्य भाई बहन
सर्वश्रेष्ठ माता पिता
ससंस्कारी संताने
यश कीर्ति
धन सम्पदा और
काम भर का वैभव
अनगिन मित्र, समर्पित प्रेमिकाएँ….अर्धांगिनी….
और इससे भी इतर
बहुत कुछ ll

दरिद्रता का भी चखाया
स्वाद
दर्द भी दिया तो ऐसा कि
आँसू नहीं
आँखों से बहा मवाद
रुप ना बहुत गोरा
और ना ही काला बहुत
पिता का विक्षोह
माँ की पीर
छुप छुप के बच्चों से
बहता उनकी आँखों
का नीर•••••
जीवन का उल्लास
मन पे लगी चोटों का
उपहास l
माँ की लोरी
उनके ममता की तिजोरी
सुहागन माँ के वैधव्य का
दरस
करने का दिया अवसर
बरस दर बरस l
असमय में दीदी का
महायात्रा पर जाना
धड़कन सरीखे अनुज को
भगवान का बुलाना
पिता से पवित्र,
ज्ञान और शोध में विचित्र
भइया का भी नश्वर देह को
छोड़ जाना
अंम्मा का बिलबिलाना
छटपटाना जीने से ऊब जाना
फिर भी मर ना पाना
पुत्री को हल्दी मेंहदी लगाना
परम्परा की वेदी पर
कन्या दान कर आना
सौ बरस पूरा किए बगैर
निन्यानबे बरस में दो माह कम में ही फरिशते श्वसुर का
हम सबको अचानक छोड़
जाना
चिता में जलकर राख होना
कब्र में दफ़न होकर ख़ाक होना
क्या क्या नहीं दिया
देने वाले ने
फलक दिया सब्र का तो
अब्र का सैलाब भी
जो कुछ भी दिया
देने वाले ने बेहिसाब दिया
मुझे सांस दी
मुझसे निबद्ध जनों को
मुझेस ही आस दी l

शुक्रगुजार हूॅं धन्यवादित हूॅं आभारी हूॅं
उस देने वाले का कि–
उसने क्या कुछ नहीं दिया ll
ढेरों स्मृतियों का खज़ाना
बहुत कुछ बहुत कुछ
दिया
देने वाले ने l

एक- एक कर बिछड़ते
हित चिन्तक नाते रिश्तेदार
और टूटता उनसे मोह••
सब कुछ तो दिया
देने वाले ने—–l

अंत में करता हूँ आभार
उस नियंता का
जिसने दिया मुझे सब कुछ
हृदय में संवेदना
नयनों में करुणा
भावनाओं से भरपूर
विचार
धर्म आस्था भक्ति आसक्ति
‘औ’ असाधारण दृष्टि !
दी बुद्धि- विवेक के
साथ समझ••••
ताकि-
करूँ स्व अवलोकन
कि
कैसा है कौन है कहाँ हैं
वो
जिसने अवसर दिया हमें
कि—-
देख सकें हम और समझ सकें उसकी सृष्टि ll

मेरे शब्द स्वर वाणी
‘औ’
अभिव्यक्ति का
वही है मेरा अपना सच्चा
सा… र… थी…
उसकी इसी अनुभूति ने
दी मुझे परख व शक्ति
और मैं लगा कहने
जय हिंद जय हिंदी
जय माँ भारती
आपकी कृपा का ही नाम है
,,,,,,,,,,संजय पुरुषारथी,,,,,,

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