🦕 *ओ३म्* 🦕
📚 ईश्वरीय वाणी वेद 📚
आज से ऋग्वेद मंडल एक सूक्त तीन प्रारंभ होता है।
*ओ३म् अश्विना यज्वरीरिषो द्रवत्पाणि शुभस्पती। पुरुभुजा चनस्यतम्* ।।
।। ऋग्वेद १/३/१।।
📓 *मंत्र का पदार्थ*📓
हे विद्या के चाहने वाले मनुष्यों ! तुम लोग ( द्रवत्पाणि ) शीघ्र वेग का निमित्त पदार्थ विद्या के व्यवहार सिद्धि करने में उत्तम हेतु ( शुभस्पती ) शुभ गुणों के प्रकाश को पालने और ( पुरुभुजा ) अनेक खाने पीने के पदार्थों को देने में उत्तम हेतु ( अश्विना ) अर्थात् जल और अग्नि तथा ( यज्वरौ ) शिल्पविद्या का सम्बंध कराने वाली ( इष: ) अपनी चाही हुई अन्न आदि पदार्थों की देने वाली कारीगरी की क्रियाओं को ( चनस्यतम् ) अन्न के समान अति प्रीति से सेवन किया करो!
💐 *मंत्र का भावार्थ*💐
इस मंत्र में परमात्मा ने शिल्प विद्या को सिद्ध करने का उपदेश किया है, जिससे मनुष्य लोग कला युक्त सवारियों को बनाकर संसार में अपने तथा अन्य लोगों के उपकार से सब सुख पावें!
🪷 *मंत्र का सार तत्व*🪷
वेद सब सत्य विद्याओं की पुस्तक है।कुछ लोगों को यह भ्रान्ति हो सकती है कि वेद केवल पंडित पुजारियों का व्यवसाय है।या केवल ईश्वर भक्ति का ग्रंथ है।या केवल कोर कर्म कांड है।
इस मंत्र द्वारा परमात्मा बता रहे हैं कि ब्रह्मांड में *जितना भी सत्य ज्ञान विज्ञान है* उसका सूत्रधार वेद ही है।एक समय में हमारे देश में *१६ कलाओं व ६४ प्रकार की विद्याओं* को गुरुकुलों में पढ़ाया जाता था।
इन *सत्य विद्याओं में ही एक सत्य विद्या है शिल्प कला* आज भी भारत के प्राचीन मंदिरों की नक्काशी शिल्प कला के उदाहरण है। अजंता और एलोरा गुफाओं में आज भी शिल्प कला बोलती हैं। मुंबई के *एलीफेंटा* जहां समुद्र की यात्रा करने के बाद पहुंचा जाता है मैंने वहां स्वयं जाकर शिल्पकला को देखा है।
महाभारत में एक राजा था उपरिचर जो *भूमि को स्पर्श* किए बिना चलता था। महाभारत काल तक, शिल्प कला से युक्त एक विमान था जो कि *टू इन थ्री* था अर्थात् वह विमान एक ही साथ जमीन, समुद्र व पहाड़ों पर चलता था जो शिल्पकला का प्रतीक था। विक्रमादित्य के सिंहासन की कठपुतलियां शिल्पा कला के हस्ताक्षर थे।ये विद्याएं भी वेदों में विद्यमान हैं दुर्भाग्यवश आज इनके विद्वानों का अभाव हो गया है क्योंकि आज वेद विद्या के पठन-पाठन की व्यवस्था समाप्त प्रायः है जो कुछ आर्य समाज के पास है वो भी केवल सूत्र परिचय के रूप में जीवित है। अगर इस पर सरकार अपना वजट लगाए तो *ईश्वरीय वाणी वेद* के रहस्य खुलते जायेंगे।
आचार्य सुरेश जोशी
*वैदिक प्रवक्ता*