आ जाओ अर्जुन गांडीव संग
आ जाओ अर्जुन गांडीव संग ले आओ तुम साथ गदाधारी भीम।
उथल पुथल यहां मचा है डरा हुआ है जनता बृंद।।
एक तरफ चौसर के पासे एक तरफ अब लक्षागृह।
पता नही कौन सकुनी है जो जला रहा है लक्षागृह ।।
धर्मराज के हाथ बंधे हैं विवश खड़े हैं साधे मौन।
भीष्म प्रतिज्ञा में बंधकर गंगा पुत्र भी खड़े हैं मौन ।।
धृतराष्ट्र तो आंख से अंधा है देख नही सकता हलचल।
पुत्र मोह में मन से भी अंधा अनीति के संग है चलकर।।
चारो तरफ भ्रष्टाचार फैला है विवश खड़ा है आम जन।
पता नही कब कौन छलेगा अपने स्वार्थ में इस आम जन ।।
बंशीधर तो आप के सखा है चक्र सुदर्शन उनके हाथ ।
कलाधारी से विनती कर लो ले आओ तुम उनको साथ।।
पाशुपत्र भी साथ में लाना धर्मरथ पर चढ़कर आना आप।
महावीर को रथ पर लाना धर्म पताका फहराना आज।।
जनता में संतोष दिलाना सम्मान दिलाना जनता को आप।
आर्यवर्त के शान शौकत में पुनः लिखवाना नवीन इतिहास।।
श्री कमलेश झा नगरपारा भागलपुर बिहार