ईश्वरीय वाणी वेद -आचार्य सुरेश जोशी

🧘 *ओ३म्* 🧘
💮 ईश्वरीय वाणी वेद 💮
*ओ३म ऋतेन मित्रावरुणावृतादृधावृतस्पृशा।ऋतुओं बृहन्तमाशाथे* ।।
।। ऋग्वेद १/२/८।।
🌹 *मंत्र का भावार्थ*🌹
( ऋतेन ) सत्य स्वरुप ब्रह्म के नियम में बंधें हुए ( ऋतावृधौ ) ब्रह्मज्ञान बढ़ाने,जल के सींचने और वर्षाने ( ऋतस्पृशा ) ब्रह्म की प्राप्ति कराने में तथा उचित समय पर जलवृष्टि के करने वाले ( मित्रावरुणौ ) पूर्वोत्तर मित्र और वरुण ( बृहन्तम् ) अनेक प्रकार के ( ऋतुष ) जगत रुप यज्ञ को ( आशाये) व्याप्त होते हैं।
🪷 *मंत्र का भावार्थ*🪷
परमेश्वर के आश्रय से उक्त मित्र और वरुण ब्रह्मज्ञान के निमित्त,जल वर्षाने सब मूर्तिमान का अमूर्तिमान जगत को व्याप्त होकर उसको वृद्धि विनाश और व्यवहारों की सिद्धि करने में हेतु होते हैं।
🌻 *मंत्र का सार तत्व*🌻
इस मंत्र में जो *मित्र और वरुण* शब्द हैं वो विचारणीय है।ये दोनों नाम ईश्वर के गुणवाची नाम है। ईश्वर के नाम दो प्रकार के होते हैं।एक निज, मुख्य नाम और दूसरा गुण वाची नाम है।
मुख्य व निजी नाम ईश्वर का *ओ३म्* ही है मगर गुणवाची नाम अनंत है।ये मित्र और वरुण भी परमात्मा के गुण वाची नाम है।
इन मित्र व वरुण गुण से युक्त नाम वाला परमेश्वर सृष्टि को दो प्रयोजनों के लिए बना रहा है।
(१) पहला प्रयोजन यह है कि जो उत्कृष्ट मानव,योगी, दार्शनिक हैं वो यहां आकर त्याग पूर्वक संसार के भोगों को आवश्यक भर भोग कर योग , भक्ति द्वारा ब्रह्म ज्ञान को प्राप्त हो जाते हैं।
दूसरे वो हैं जो प्राकृतिक पदार्थों को भोग -भोग कर अपने *शरीर,मन, बुद्धि* का पतन कर बार-बार जन्म मृत्यु के चक्कर में पड़ते रहते हैं। इसलिए *मित्र व वरुण गुण वाला परमेश्वर* इस सृष्टि की समय समय पर *उत्पत्ति -पालन – संहार*करता रहता है।यही बात इस मंत्र में परमात्मा बता रहे हैं। यहां एक बात यह ध्यान देने की है कि कहीं मित्र और वरुण नाम देखकर यह भ्रम न हो जाए कि ईश्वर शरीर धारण करता हो! ऐसा नहीं है *ईश्वर निराकार था।है। और रहेगा* !
आचार्य सुरेश जोशी
🕉️ वैदिक प्रवक्ता 🕉️
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