अनुराग लक्ष्य, 19 मई
सलीम बस्तवी अज़ीज़ी,
मुम्बई संवाददाता ।
,,,तुम्हीं दुर्गा, तुम्हीं लक्ष्मी, तुम्हीं हो फातिमा जग में
तुम्हीं खुशबू, तुम्हीं रंगत, तुम्हीं हो चांदनी नभ में
तुम्हीं से हैं नज़ारे आज भी दुनिया की हर शय में
तुम्हीं दरिया, तुम्हीं सागर, तुम्हीं हो आज भी तप में,,
मैं सलीम बस्तवी अज़ीज़ी, आज देश की जिस कवयित्री का ज़िक्र करने जा रहा हूं, यह ज़रूरी था कि उसके सम्मान में उपरोक्त चार पंक्तियां ज़रूर कहता। दुनिया ए अदब जिसे स्मिता मालवीय के नाम से जानती और पहचानती है।
प्रयाग राज की धरती पर पली बढ़ी और शिक्षा गरहड़ करने के साथ सैकड़ों साहित्यिक मंचों पर गंगा भक्ति में डूबी अपनी कालजई रचनाओं के साथ देश की राजधानी में इस वक्त अपनी रचनाओं के द्वारा सफलता के नित नए आयाम रच रही हैं। उनकी इन्हीं रचना धर्मिता से परभावित होकर आज यह कालजई रचना आप तक पहुंचा रहा हूं।
हे गंगे माँ तेरी धारा यूँ ही बहती रहे अविरल l
है तेरी बूँद-बूँद निर्मल पतित पावन है तेरा जल ll
हैं प्रेमीजन तुम्हें ध्याते, तुम्हें गाते, तुम्हें पाते l
तुम्हारी भक्ति में डूबे तेरे दर्शन को हैं आते l
सोचकर क्या लाए तुमको, यहाँ पर क्या पाया तुमने l
किया उपहास जी भर के, तुम्हारी ममता का सबने l
अगर होता रहा यूँ ही, हनन कर्तव्यों का जग में l
सुनो ये बात स्मिता की, अस्मिता ख़तरे में माँ की l
वो बातें क्यों करें बढ़कर, जिन्हें पूरा न कर पाएँ l
हमें धिककार है खुद पर,जो माँ को न बचा पाएँ ll
यह गीत युवा कवयित्री एवं कालांतर में ग्लोबल ग्रीन्स की क्षेत्रीय महिला समन्वयक “Smita Malviya” ने संस्था की संगम से उदगम की जनयात्रा
के दौरान गंगामइया के अमृत मयी जल में फैले प्रदूषण को लिखा । जो आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितना कि कुछ वर्ष पूर्व में थी। एक दिलकश आवाज़ की धनी कवयित्री के साथ साथ देश उनकी उत्कृष्ट रचनाओं के लिए हमेशा याद करेगा, ऐसा मेरा विश्वास है।