🌸🌸 ओ३म् 🌸🌸
🦚 ईश्वरीय वाणी वेद 🦚 *इंद्रवायू इमे सुता उप प्रयोभिरागतम्।इन्दवो वामुशन्ति हि*
ऋग्वेद १/२/४
🥝 मंत्र का पदार्थ 🥝
जिस प्रकार सूर्य और पवन संसार के पदार्थों को प्राप्त होते हैं, वैसे उनके साथ इन निमित्तों करके सब प्राणी अन्न आदि तृप्ति करने वाले पदार्थों के सुखों की कामना करते हैं। इंदव:= जो जल क्रिया मय यज्ञ और प्राप्त होने योग्य भोग हैं, वे हि= जिस कारण से पूर्वोक्त सूर्य और पवन के संयोग से उशन्ति = प्रकाशित होते हैं,इसी कारण प्रयोभि = अन्नादि पदार्थों के योग से सब प्राणियों को सुख प्राप्त होता है।
🪵 मंत्र का भावार्थ 🪵
इस मंत्र में परमेश्वर ने, प्राप्त होने योग्य प्राप्त कराने वाला इन दो पदार्थों का प्रकाश किया है।
🏵️ मंत्र का सार तत्व 🏵️
यह संपूर्ण ब्रह्मांड सूर्य ने अपनी आकर्षण शक्ति से उसी प्रकार से खींच रखा है जैसे आकाश के बीच फेंका हुआ पत्थर पृथ्वी की आकर्षण शक्ति से पृथ्वी ही पर लौटकर आ पड़ता है।
समस्त गैलेक्सियां सौरमंडल में सूर्य के कारण ही स्थिर हैं और अपना अपना काम कर रही है।केवल सौरमंडल ही नहीं अपितु भूमि को प्रथम सूर्य तपाता है फिर वर्षा के मेघ बनाकर आकाश में लाता है फिर जल पृथ्वी पर वर्षाता है।इन प्राप्त होने वाले जल व इसको प्राप्त कराने वाला सूर्य सब ईश्वर की यज्ञमय सृष्टि है।उसी का धन्यवाद जीवात्माओं को करना चाहिए।
आचार्य सुरेश जोशी
*वेदिक प्रवक्ता*
*7985414636*