*ओ३म्*
ईश्वरीय वाणी वेद
ओ३म् यदङ्ग दाशुषे त्वमग्ने भद्रं करिष्यसि।तवेत्तत्सत्यमंगिर:।।
🦚 *मंत्र का पदार्थ*🦚
हे [ अंगिरा: ] सर्व रक्षक ईश्वर [ अंग ] हे सबके मित्र [अग्ने ] परमेश्वर!, [ यत् ] जिस कारण आप [ दाषुषे ] निर्लोभता से उत्तम पदार्थों के दान करने वाले मनुष्य के लिए [ भद्रम ] कल्याण जो कि शिष्ट विद्वानों के योग्य है उसको [ करिष्यसि] करते हैं, सो यह [ तवेत् ] आप ही का सत्य व्रत है। ऋग्वेद १/१/६🍁
🌴 *मंत्र का भावार्थ*🌴
जो न्याय,दया, कल्याण और सबका मित्र भाव करने वाला परमेश्वर है उसी की उपासना करके जीव इस लोक और मोक्ष के सुख को प्राप्त होता है। क्योंकि इस प्रकार के सुख देने का स्वभाव और सामर्थ्य केवल परमेश्वर का है, दूसरे का नहीं, जैसे शरीरधारी अपने शरीर को धारण करता है वैसे ही परमेश्वर सब संसार को धारण करता है, और इसी से यह संसार की यथावत् रक्षा स्थिति होती है।
🪷 *मंत्र पर टिप्पणी*
यहां पर शरीर धारी जैसे अपने *शरीर* को धारण करता है वैसे ही परमात्मा *संसार* को धारण करता है इस अर्थ में लोगों को भ्रांति हो सकती है कि ईश्वर साकार होकर शरीर को धारण करता है। अतः इस भ्रांति का निवारण होना जरूरी है।
यद्यपि *शरीर* प्रत्यक्ष दिखता है मगर जो शरीर धारी है उसका नाम *जीवात्मा* है और जीवात्मा भी निराकार है उसी प्रकार प्रत्यक्ष दिखने वाले *संसार* को भी निराकार ईश्वर बनाता है।जो लोग जीवात्मा को साकार मानने का भ्रम रखते हैं उन्हीं को ईश्वर को भी साकार मानने का भ्रम हो सकता है।जिसको यह *तत्वज्ञान* हो जायेगा कि जीवात्मा निराकार है फिर उसको यह *तत्वज्ञान* भी हो जायेगा कि ईश्वर भी *निराकार* है। साकार संसार बनाने के लिए ईश्वर को साकार होने की आवश्यकता नहीं है।हे मनुष्यों उसी निराकार ईश्वर का ध्यान करो वो सबका *रक्षक* है।
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आचार्य सुरेश जोशी
*वैदिक प्रवक्ता*
आर्यावर्त साधना सदन पटेल नगर दशहराबाग बाराबंकी उत्तर प्रदेश ☎️ 7985414636☎️