ग़ज़ल
तुम सुनो या न सुनो हम तो सदा देते हैं।
लोग क्या यूं भी किसी को भी भुला देते हैं।
क्यों वो करते हैं सदा यूं ही समझना मुश्किल।
नाम लिख लिख के ज़मीं पर वो मिटा देते हैं।
जब भी आते हैं लिए साथ बहारें आते।
फूल हर सिम्त ख़ुशी के वो खिला देते हैं।
हमको जीने की तमन्ना भी नहीं तब रहती।
लोग नज़रों से अगर हमको गिरा देते हैं।
आप हैं हमसे ख़फ़ा अब ये समझ में आया।
आप जब दर्द की हमको न दवा देते हैं।
हम समझते हैं इबादत ही कोई की हमने।
जब भी रोते हुए बच्चों को हंसा देते हैं।
शाद आबाद रहें आप हमेशा हर पल।
रूप हर वक्त यही हम तो दुआ देते हैं।
रूपेंद्र नाथ सिंह रूप