दादा जी -स्वरा अस्मिता सिंह

दादा जी

बेशक जीवन पापा ने दिया,पर मेरे जीवन दादा जी
मेरे जीवन की नींव के, पहले पत्थर हैं दादा जी

पापा ने मुझको गुड़िया दी, पर चाबी उसकी दादा जी
मेरे परिवार की शाखा के,वो स्थिर जड़ हैं दादा जी

पापा ने पैसे दे डाले,पर प्यार में आगे दादा जी
जब भी मैं गिरी जीवन में तो,पहले पकड़े हैं दादा जी

गलती पर पापा ने डांटा ,तो माफ़ किए हैं दादा जी
मेरी हर छोटी सी ज़िद पर, पल पल पिघले हैं दादा जी

रोई तो पापा ने पूछा, आंसू पोछे हैं दादा जी
अपनी कंपती हाथों से भी, मुझको जकड़े है दादा जी

पारियों की कहानी से हटकर, रामायण दिए हैं दादा जी
हिंदी की बिंदी के जैसे, संपूर्ण किए हैं दादा जी

जीवन के हैं जो सार पिता, सारांश है मेरे दादा जी
मेरे जीवन के पहलू का, अधिकांश हैं मेरे दादा जी

बस चाह है मेरे जीवन की , मुस्काए हमेशा दादा जी
जब तक मै रहूं,मुझमें वो रहें,हो साथ हमेशा दादा जी।
आपकी स्वरा अस्मिता सिंह
जिला बस्ती, उप्र

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