अयोध्या 24 अक्टूबर अयोध्या मे स्वामी श्री धराचार्य जी महाराज ने कथा का श्रवण कराते हुए कहा हम सभी जीव प्रभु के अंश हैं प्रभु ही हमारे अंशी हैं अतः में सदैव प्रभु भक्ति में लगे रहना चाहिए आज ही के दिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम ने रावण का वध किया अ धर्म पर धर्म की जीत हुयी हम सभी जीवों के अंदर बैठे हुये अझान रुपी रावण को बाहर निकाल के धर्म रूपी मार्ग मैं चलने पर ही प्रभु भक्ति की प्राप्ति होती है बाल्यावस्था में भक्ति मार्ग में चलकर परमात्मा को प्राप्त कर लेने पर 5 वर्ष के बालक ध्रुव की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं बालक ध्रुव के जैसी अखंड भक्ति यदि साधक के अंदर व्याप्त हो जाए तो सर्व अंतर्यामी भगवान श्री हरि उसके सभी मनोरथ पूर्ण करते हैं राजा उत्तानपाद भक्त ध्रुव को सिंहासन पर बैठा कर राजा बना देते हैं आज भी सभी भगवत भक्तो मैं ध्रुव जी का स्थान उच्च है पापी अजामिल की कथा का श्रवण कराते हुए कहा संतो की कृपा भगवत भक्तों की कृपा जब हो जाती है तो जन्म जन्मांतर पाप कर्म करने के बाद भी प्रभु अपना लेते हैं दुष्ट अजामिल नित्य दुष्ट कर्म किया करता था एक दिन संतो ने अजामिल के घर का अन्न ग्रहण कर लिया परोपकारी संतजन अजामिल के घर से जाते समय उस पर कृपा करते हुए अजामिल की पत्नी गर्भवती थी दक्षिणा के रूप में अजामिल से होने वाले पुत्र का नाम नारायण रखने के लिए कह कर वहां से चले गए अंतिम समय में मृत्यु से भयभीत होकर के अजामिल ने अपने पुत्र नारायण को आवाज लगाई पुत्र ने तो अजामिल की बात नहीं सुनी लेकिन भगवान नारायण के पार्षद आ कर अजामिल को भगवान के धाम वैकुंठ को ले जाते हैं यमदूतों में और भगवान के पार्षदों में परस्पर विवाद होता है अंत में पराजित हो कर यमदूत यमराज के पास जाकर के रुदन करने लगते हैं यमराज अपने दूतों को समझाते हुए कहते हैं व्यक्ति यदि अंत समय में भगवान श्री नारायण के नाम का स्मरण कर लेता है श्री वैष्णव दीक्षा ग्रहण कर लेता है वह नरक में आने का अधिकारी नहीं है अनेक पाप कर्मों में लिप्त होने पर भी यदि अंत समय में अपना सर्वस्व भगवत चरणों में अर्पित कर दिया जाए शरणागति कर ली जाए तो अंतर्यामी पर ब्रह्म जीव को अपना लेते हैं हिरण्यकश्यप में घोर तप किया प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त करके हिरण्य कश्यप अपने को ब्रह्मा मानने लगा और प्रजा में ढिंढोरा पिटवा दिया कोई भी यज्ञ नहीं करेगा मेरे शत्रु नारायण का नाम मेरे राज्य में नहीं लेगा हिरण्यकश्यप की पत्नी कयाधु के गर्भ से भक्त प्रहलाद की उत्पत्ति होती है प्रह्लाद अपनी मां के गर्भ में देवर्षि नारद से नवधा भक्ति प्राप्त करते हैं हिरण्यकश्यप प्रहलाद जी को राक्षसी विद्या पढ़ने भेजते है बचपन से ही प्रहलाद जी की लगन प्रभु भक्ति में थी सभी दैत्य बालकों को बिठाकर प्रहलाद जी भगवान नारायण की महिमा श्रवण कराते हैं हिरण्यकश्यप प्रह्लाद जी से दुखी होकर प्रहलाद को कठोर यातनाएं देते हैं अपार कष्ट पाकर भी प्रहलाद जी भक्ति मार्ग को नहीं छोड़ते प्रहलाद जी का विश्वास और कठोर हो जाता है भक्त प्रहलाद को बचाने प्रभु नरसिंह रूप धारण करके हिरण्य कशिपु का वध करते हैं भक्त वत्सल है प्रभु अपने भक्तों की रक्षा करने हेतु प्रभु बैकुंठ से दौड़कर रक्षा करते हैं देश के विभिन्न राज्यों से पधारे भक्तजन कथा का श्रवण करके आनंदित हो रहे हैं कथा का समय 3:00 बजे से शाम 7:00 बजे तक है भगवद्भक्त कथा में पधारकर अपने जीवन को धन्य करें।