नई गजल प्रस्तुत

कभी न फ़र्ज़ के मुकाबिल किया हक हमने।

इसी तरह से फर्जे मुकद्दस अदा किया हमने॥१

 

टूटे तारे सा खुद को तन्हा है किया हमने।

इसी तरह से खुद से खुद को दूर किया हमने॥२

 

लड़ते – २ ही एक अरसा निकल गया दर से।

खुद के लम्हे के लिये खुद का न सुना हमने॥३

 

सुकूं ए ज्वार आया और निकल गया सर से।

ताहम मैंने खुद के लिये बूँदों को गिना हमने॥४

 

तुफानी रात थी कदमों ज़ुबां में थी लरजिश।

ताहम इक २ घूँट को सलीके है पिया हमने॥५

 

हमारे वक्त का ख़ज़ाना खरच किया सबने।

और हर वक्त को औरों के लिये जिया हमने॥६

 

रक़ीब थे के कलियों से चुरा लिये गुल को।

अश्क़े चश्म से उनको फिर हरा किया हमने॥७

 

एकाकी दंश अक्सर ही जी रहा था मगर।

अब दोस्तों की महफ़िल को सजाया हमने॥८

 

बाल कृष्ण मिश्र “कृष्ण”

सरे राह भरतपुर से कोटा

जन शताब्दी ट्रेन

२८.०९.२०२३

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