बस्ती – जनपद बस्ती की बेगम खैर गर्ल्स इंटर कालेज की प्रधानाचार्या मुस्लिमा खातून ने कहा कि हमारे विद्यालय की छात्रा नीलाक्षी मौर्या ने 30वीं राष्ट्रीय बाल विज्ञान 2022-23 के मुख्य विषय “स्वास्थ्य और पर्यावरण हित के लिए पराली से प्लेट बनाने तक की यात्रा” अध्ययन के दौरान बाल वैज्ञानिकों ने पाया कि वर्तमान समय मे पर्यावरण प्रदूषण एक अहम समस्या है। जिसमे वायु प्रदूषण मुख्य है। वायु मंडल को दूषित करने मे पराली दहन एक बड़ा कारण है। मूलत: यह पराली धान की फसल का अवशेष होती है। पंजाब हरियाणा व उत्तर प्रदेश के अधिकतर किसान इसे जला देते है इससे मिट्टी की जैविक गुणवत्ता प्रभावित होते है पराली जलाने से पर्यावरण नुकसान से अधिक मिट्टी की उर्वरा शक्ति प्रभावित होती है। केवल एक टन पराली जलाने से 5.5 किग्रा नाइट्रोजन 2.3 किग्रा फास्फोरस 25 किग्रा सल्फर जैसे पोषक तत्व नष्ट हो जाते है । पराली जलाने के नकारात्मक स्वास्थ्य प्रभावों से फसल की उत्पादकता भी कम होती है। और अर्थव्यवस्था व स्वास्थ्य पर दीर्घकालीन प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। उत्तर भारत में जलने वाली पराली की वजह से देश को लगभग 2 लाख करोड़ का नुकसान होता है। यह नुकसान वायु प्रदूषण की आर्थिक के साथ बीमारियों के खर्च के तौर पर होता है। यह आकलन अर्न्तराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (IFPRI) ने लगाया है। इन सभी समस्याओं को ध्यान में रखते हुए हमने इस प्रोजेक्ट के माध्यम से इस समस्या का हल निकाला है। अगर हम पराली को जलाये नही वरन् उसके स्थान पर पराली को एकत्रित करके उससे इकोफ्रेण्डली प्लेट कटोरी बनाएगें। इससे इस समस्या का निवारण हो सकेगा ।
अध्ययन के दौरान हमने पाया कि कई वर्ष पूर्व ग्रामसभा में पारम्परिक वस्तुओं का बहुत महत्व था । जैसा कि पेड़ के पत्तों तथा मिट्टी के पात्रों का उपयोग करना आदि। बढ़ते हुए भौतिकतावादी युग के कारण लोगों ने कुछ परम्परागत चीजों को पूर्णतः छोड़ दिया है। तथा प्लास्टिक थर्माकोल जैसे प्रदूषकों का उपयोग कर रहे हैं। जिससे पर्यावरण प्रदूषण हो रहा है तथा हमारे स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। वर्तमान समय की मांग है कि अपनी परम्परागत चीजो से इकोफ्रेण्डली वस्तुओं का निर्माण कर उसका उपयोग करें। जैसे पराली से प्लेट बनाने की विधि। एक तरफ किसानों को लाभ पहुँचाएगी तथा दूसरी तरफ यह पराली से बनी बर्तन आसानी से सड़-गल कर मिट्टी में मिल जायेगें। जब हमें यह विषय मिला कि “स्वास्थ्य और कल्याण के लिए पारितंत्र को समझना” तो हमने आपस में विचार विर्मश किया हम वर्तमान समय में कौन सी परेशानी से जूझ रहे है? तब हमने अपने आस-पास पाया कि आज कल पर्यावरण प्रदूषण अहम समस्या हो गयी है। नीलाक्षी मौर्या ने जब अपने गाँव में देखा कि अक्टूबर व नवम्बर में खरीफ की फसल के बाद अधिकतर किसान खेत में उपस्थित अपशिष्ट पदार्थों (पराली) को जला रहे है। जिससे वायु प्रदूषण हो रहा है। इसका सीधा असर 60 साल से अधिक बुजूर्ग व्यक्ति तथा 5 साल तक के बच्चों पर पड़ता है इन्हें साँस लेने में तकलीफ होती है। पराली के अवशेष को जलाने से मिट्टी की उर्वरकता भी नष्ट हो जाती हैं। पराली जलाने से पैदा होने वाली ग्रीन हाऊस गैस से पर्यावरण को भी नुकसान पहुँचता है। पराली जलाने से तीव्र श्वसन संक्रमण भी होता है। पराली जलाने से 190 बिलियन डॉलर या भारत के सरल घरेलू उत्पाद का लगभग 1.7 प्रतिशत नुकसान होता है। तब हमे यह सूझा कि हम पराली से बहुत कुछ बना सकते है। और हम दैनिक जीवन में उपयोग होने वाले प्लास्टिक थर्माकोल जैसे प्रदूषकों की जगह पराली से बने प्लेट कटोरी इत्यादि का उपयोग करें। और यह बिल्कुल पर्यावरण अनुकुल भी होगा।
अक्टूबर में जब उत्तर भारत के तापमान में कमी आनी शुरू होती है। तभी पंजाब और हरियाणा में पराली जलनी शुरू होती है। इस पराली का धुँआ सड़कों की धूल वाहनों का उर्त्सजन आदि मिलकर आसमान में स्माग पैदा करते हैं। यह स्माग तो तेज हवा से दूर होता है या बारिश से । वायु मण्डल को दूषित करने में पराली दहन एक बड़ा कारण है। मूलतः पराली धान की फसल का अवशेष है। चुँकि किसानों को खेत खाली करके उस पर गेहूँ बोने की जल्दी रहती है। इस लिए वे पराली को जलाना बेहतर समझते है। इससे उनका ही नुकसान होता है। उनके खेत की मिट्टी की उर्वरकता नष्ट होती है। वातावरण तथा स्वास्थ्य दोनों पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
हमारा उददेश्य यह है कि भारत के सभी नागरिक पराली से बने प्लेट कटोरी इत्यादि का उपयोग करें।
• प्लास्टिक तथा थर्माकोल से बने पात्रों का उपयोग न करें क्योंकि यह जल्दी नष्ट नही होते है।
• पराली से बनी प्लेट कटोरियों का सही इस्तेमाल हो ।
• प्लेट को जलाये नही और उसे जमीन में गड्ढा खोद कर डाल दे। और यह आसानी से सड़-गल जायेगा ।
चुँकि पराली हमेशा उपलब्ध नही होती है। इस लिए पराली या पराली से बने बर्तनों का संग्रहण ध्यानपूर्वक हो
सर्वप्रथम हम खेतों से पराली को एकत्रित्र करते है । उसके बाद उसे छोटे-छोटे टुकड़ों में काट लेते है। फिर उसे धोते है उसके बाद पानी में रखकर अधिक समय तक उबालते है। जिससे लुगदी बन जाता है। अब इस लुगदी को मशीन द्वारा अलग-अलग आकार देते है । जैसे- प्लेट, कटोरी आदि ।जो बिल्कुल इकोफ्रेण्डली होता है। यह जमीन पर जल्दी नष्ट हो जाता है। इससे पर्यावरण प्रदूषण रोकथाम मे मदद मिलेगी।
हमने खेत में जाकर जलती हुई पराली देखा पराली जलने से खेत तो साफ हो गया परन्तु वहाँ की मिट्टी गर्म हो चुकी थी । जिससे मिट्टी में पाये जाने वाले लाभकारी जीवाणु तथा अन्य कीट (केचुआ) नष्ट हो जाते हैं। तथा आसमान में धुम्र कोहरा छाया हुआ था ।
हमने अपने गाँव बड़कुइयाँ तथा आस-पास के गाँव जैसे- तेरता, तेलियाडीह तथा कटेसर में देखा कि वहाँ पर भी लोग पराली जला रहे है।
आकड़ों का संग्रह
पराली वेस्ट का मूल्य :- मौजूदा बाजार में पराली 2500 से लेकर 5000रू0 तक प्रति एकड़ की दर से विक्रय होती है। 1किलो पराली का दाम 2 रू0 होता है।
उत्पाद बढ़ाने के लिए मशीन:- (1) पराली वेस्ट फिल्टर मशीन (2) पराली वेस्ट वाशिंग मशीन (3) पराली वेस्ट थ्रेडर मशीन (4) पल्प मेकिंग मशीन ( 5 ) पल्प उत्पाद मेकिंग मशीन (डाई / साँचें के साथ)
आँकड़ों का विश्लेषण
छोटे स्तर पर पराली से पल्प तैयार करने की प्रक्रिया:- 1. पराली से मिट्टी आदि सफाई करना प्राथमिक चरण है।
2. उसके बाद पराली को छोटे-छोटे टुकड़ों में (1 से डेढ़ सेमी) पराली श्रेडर मशीन से किये जाते है।
3. इन छोटे-छोटे टुकड़ों को साफ पानी से वाशिंग मशीन में धोया जाता है।
4. इसके बाद पराली की लुगदी तैयार करने बारी आती है। पल्प बनाने के लिए एक गहरे बाउल जैसे पात्र की आश्वकता होती है। जिसमें 60 प्रतिशत साफ पानी 30 प्रतिशत पराली वेस्ट की आवश्यकता होती है।
5. उपरोक्त बताई गयी मात्रा के अनुसार साम्रगी को लेकर बाउल में भर दिया जाता है। और मध्यम आँच में पकाया जाता है। पराली का पल्प बनने में लगभग 30 मि0 से लेकर 60 मि0 लग सकते है।
बड़े स्तर पर पल्प तैयार करने की प्रक्रिया:- बड़े स्तर पर अथवा आद्यौगिक स्तर पर पराली की पल्प बनाने की प्रक्रिया मैनुअल, सेमीआटोमेटिक अथवा फूलीआटोमेटिक मशीनों द्वारा किया जाता है ।
1. खेत खलिहान से प्लांट पर आने के बाद सबसे पहले रॉ पराली के छोटे-छोटे टुकड़े पराली श्रेडर मशीन से किये जाते है।
2. इसके बाद पराली में लगी अतिरिक्त गंदगी (मिट्टी व धूल) आदि की सफाई करने के उददेश्य से घुला या फिल्टर किया जाता है।
3. इसके बाद साफ हो चुकी पराली को पल्प मेकिंग मिल में भर दिया जाता है। यह पल्प मेकिंग मिल पराली का लुगदी तैयार कर देती है। जिससे वांछित उत्पाद का निर्माण आसानी से किया जा सकता है।
मशीन द्वारा पल्प से उत्पाद बनाने की प्रक्रिया:-
1. तैयार पल्प को एक फैलावदार पात्र में निकाल कर कुछ समय के लिए गुनगुना होने तक छोड़ दिया जाता है।
2. इसके बाद वांछित उत्पाद की डाई / साँचा लेकर पल्प को साँचे में भरकर कठोर दाब की मदद से पल्प का निर्जलीकरण कर वांछित उत्पाद के आकार में ढाल दिया जाता है। प्रति उत्पाद बनाने की प्रक्रिया में लगभग 5 से 10 मिनट तक लग सकते है।
3. आकार में ढल जाने के बाद वांछित उत्पाद को सूखने के लिए खुली हवा में 24 से 48 घण्टों के लिए छोड़ दिया जाता है। सूख जाने के बाद तैयार उत्पाद उपयोग में लिए जाने को तैयार ह जाता है।
पराली से होने वाले प्रदूषण से बचने के लिए उससे कप, प्लेट आदि बनाने की एक नई विधा तैयार हुई ।
• जिससे हम एक तरफ पर्यावरण को संरक्षित एवं सुरक्षित रख सकते है। दूसरी तरफ प्लास्टिक थर्माकोल जैसे विषाक्त व प्रदूषको से बचे रह सकते है।
• वर्तमान समय की यही आवश्यकता है कि पर्यावरण अनुकूल सामग्रियों का उपयोग किया जाए जिससे मानव सहित सभी जीव का कल्याण हो सकें ।
• इस प्रकार हम स्वास्थ्य के प्रति सचेत होकर पर्यावरण को
स्वच्छ रख सकते है । • कृषि भूमि व कृषक दोनों के लिए लाभकारी क्रियाविधि अपना सकते है।
हमारे प्रोजेक्ट के माध्यम से लोगों में इस प्रकार की जागरूकता आयेगी लोग पराली जलाना बन्द कर देंगे जिससे उनके खेत की उर्वरकता बढ़ेगी और उनको एक आय भी प्राप्त होगी। साथ ही साथ शादी विवाह पार्टियों के लिए पर्यावरण अनुकूल तथा स्वास्थ्य वर्धक ग्लास, प्लेट, दोनें इत्यादि प्राप्त हो सकेगें ।
जब हमने किसानों के पास जाकर उनसे पूछा आप पराली क्यों जलाते है? तो उन्होनें कहा “हम इसे रखकर करेंगे ही क्या? यह हमारे किसी भी काम का नही। थोड़ा बहुत रखकर बाकी सब हम लोग जला देते है। जलाने से हमे राख प्राप्त होता है। तथा खेत साफ हो जाता है। किसान अगर पराली न जालाये इसे इकट्ठा कर लें और इसको किसी फर्टिलाइजर कंपनी में दे दे और इसका अच्छा दाम मिल जाएगा।