देश को आजाद कराने में अगस्त क्रान्ति का विशेष योगदान- डा. वी.के. वर्मा

बस्ती । कबीर साहित्य सेवा संस्थान द्वारा बुधवार को अगस्त क्रान्ति के अवसर पर मो0 सामईन फारूकी के संयोजन में कलेक्ट्रेट परिसर में गोष्ठी का आयोजन किया गया। मुख्य अतिथि डॉ. वीके वर्मा ने कहा कि भारत छोड़ो आंदोलन देश की आजादी के लिए एक निर्णायक मोड़ था। विभिन्न स्रोतों से आजादी की जो इच्छा और उसे हासिल करने की जो ताकत भारत में बनी थी,उसका अंतिम प्रदर्शन भारत छोड़ो आंदोलन में हुआ। आंदोलन ने इस बात पर निर्णय किया गया कि आजादी की इच्छा में भले ही नेताओं का  साथ था लेकिन उसे हासिल करने की ताकत निर्णायक रूप से जनता की थी। देश को आजादी दिलाने में इस क्रान्ति का विशेष महत्व है।
अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार सत्येंद्रनाथ ‘मतवाला ने कहा कि इस आंदोलन की शुरुआत मुंबई के एक पार्क से हुई थी जिसे अगस्त क्रांति मैदान नाम दिया गया। आजादी के इस आखिरी आंदोलन को छेड़ने की भी खास वजह थी। दरअसल जब द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हुआ तो अंग्रेजों ने भारत से उसका समर्थन मांगा था, जिसके बदले में भारत की आजादी का वादा भी किया था। भारत से समर्थन लेने के बाद भी जब अंग्रेजों ने भारत को स्वतंत्र करने का अपना वादा नहीं निभाया तो महात्मा गांधी ने अंग्रेजों के खिलाफ अंतिम युद्ध का एलान कर दिया। इस एलान से ब्रिटिश सरकार में दहशत का माहौल बन गया था।
संचालन करते हुये वरिष्ठ कवि डा. रामकृष्ण लाल ‘जगमग’ ने कहा कि भारत को स्वतंत्रता दिलाने के लिए अनेक आंदोलन किए गए। अंग्रेजी सत्ता को भारत की जमीन से उखाड़ फेंकने के लिए गांधी जी के नेतृत्व में जो अंतिम लड़ाई लड़ी गई थी उसे ‘अगस्त क्रांति’ के नाम से जाना गया है। इस लड़ाई में गांधी जी ने ‘करो या मरो’ का नारा देकर अंग्रेजों को देश से भगाने के लिए पूरे भारत के युवाओं का आह्वान किया था। इस आंदोलन की शुरुआत नौ अगस्त 1942 को हुई थी।
गोष्ठी में श्याम प्रकाश शर्मा, बी.के. मिश्र, पं. चन्द्रबली मिश्र, छोटेलाल वर्मा आदि ने कहा कि अगस्त क्रान्ति का ही प्रभाव था कि अंग्रेजोें को भारत छोड़कर जाना पडा और देश को आजादी मिली।  मुख्य रूप से रामकृष्ण पाण्डेय ‘विपिन’, दीपक सिंह प्रेमी, हरिकेश प्रजापति, गणेश मौर्य आदि उपस्थित रहे। आभार ज्ञापन कबीर साहित्य सेवा संस्थान  के अध्यक्ष सामईन फारूकी ने किया।

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