,,,,,,,,,,,,,,, ग़ज़ल ,,,,,,,,,,,
कली गुलाब की खिलती है जैसे गुलशन में, लबों पे अपने तबस्सुन खिला के रखते हैं, हिदायत बदायुनी,,,,
अनुराग लक्ष्य, 2 अक्टूबर
सलीम बस्तवी अज़ीज़ी
मुम्बई संवाददाता ।
अदब की दुनिया की जानी मानी शख्सियत हिदायत बदायुनी आज किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं क्योंकि हिदायत बदायुनी साहब के कलाम अब समयीन से खुद गुफ्तगू करते नज़र आ रहे हैं, तभी तो हर छोटे बड़े मुशायरे में आज उनकी शिरकत बराबर हो रही है। इसी लिए मैं सलीम बस्तवी अज़ीज़ी आज उनकी एक खास ग़ज़ल से आपको रूबरू करा रहा हूं।
1/हसीं चांद सी सूरत छुपा के रखते है,
घटाए जुल्फ का पहरा लगा के रखते हैं,,
2/शबाब ऐसा के रौशन हो चांदनी जैसे,
हया ओ शर्म से पलकें झुका के रखते हैं,,
3/
कली गुलाब की खिलती हो जैसे गुलशन में,
लबों पे अपने तबस्सुम खिला के रखते हैं,,
4/क़यास करते हैं शायद गुजरना हो जाए,
दयारे इश्क़ को दिल में सजा के रखते हैं,,
5/सुरूर आज भी है तेरी मस्त आंखों का,
तेरे निगार को दिल में बसा के रखते हैं,,
6/जिन्हें शराब मयस्सर नहीं कभी होती,
वही शराब के क़तरे बचा के रखते हैं,,
7/तुम्हारे फूल मोहब्बत के सब हिदायत ने,
है इक किताब उसी में दबा के रखते हैं,,
,,,,,,, पेशकश, सलीम बस्तवी अज़ीज़ी,,,,,