आज बीज नफ़रत का बोने वाले नाच रहे, ओम प्रकाश मिश्र,

अनुराग लक्ष्य, 26 अगस्त

सलीम बस्तवी अज़ीज़ी

मुम्बई संवाददाता ।

तालियों की गड़गड़ाहट से दबा जाता हूँ मैं,

शेर कहता हूँ तो ग़ज़लों में समा जाता हूँ मैं।

मैंने माना मीर ओ ग़ालिब का नहीं है दौर यह,

फिर भी शोक ओ ज़ौक से अब भी सुना जाता हूँ मैं ।।

आज इस ख़बर को लिखते वक्त मैं सलीम बस्तवी अज़ीज़ी अपने कलाम से इसलिए इसकी शुरूआत कर रहा हूँ कि जिस कलमकार के बारे में लिखने जा रहा हूँ, वोह निसंदेह मेरी उपरोक्त पंक्तियों के सच्चे हकदार हैं। दुनिया ए अदब जिन्हें ओज के कवि ओम प्रकाश मिश्र के नाम से जानती और पहचानती है।

गोंडा जिले के तुलसीपुर की सर ज़मीन से ताल्लुक रखने वाले ओम प्रकाश मिश्र जी पिछले तीन दशक से साहित्यिक गतिविधियों में शामिल होने के साथ साथ एक खूबसूरत शख्सियत भी हैं। जिन्होंने तुलसीपुर की साहित्यिक ज़मीन को संबल प्रदान किया है। कवि सम्मेलनों और मुशायरों में अपनी तेजधार रचनाओं से श्रोताओं को मंत्र मुग्ध कर देने वाले ऐसे ही ख्यातिलब्ध रचनाकार ओम प्रकाश मिश्र जी की आज एक खास रचना से रूबरू करा रहा हूँ।

हेकविजी लेखनी चलाओ भूँखों नंगों पर,

हे कवि जी लेखनी चलाओ शोषण दंगों पर।

बहुत लिखा तुमने फूलों पर भंवरों की बातें,

बहुत लिखा तुमने सुख के दिन मदमाती रातें,

अब तो इनको छोड़ लिखो जीवन के जंगों पर,

हे कवि….

तुमने पद्मावत रच डाला नख सिख बर्णन का,

तुमने गाया गीत प्रेम सौंदर्य समर्पण का,

बहुत हुईं बातें चितवन उच्छास उमंगों पर,

हे कवि….

आज बीज नफरत के बोने वाले नाच रहे,

भेद भाव अलगाव की पोथी प्रतिपल बांच रहे,

कोई बात नहीं करता क्यों कुपित कुरंगों पर,

हे कवि…

कलम अगर थामा है तो निज धर्म निभाओ जी,

मंत्र जागरण का फूंको अब आगे आओ जी,

वार करो आस्तीनों में पल रहे भुजंगों पर,

 

हे कवि….

धारदार लेखनी बड़ी तलवार से होती है,

अन्यायी की हार इसी के वार से होती है,

बैसाखी बन प्यार लुटाओ अक्षम अपंगों पर,

हे कविजी लेखनी चलाओ भूँखों नंगों पर।

,,,,,,, पेशकश, सलीम बस्तवी अज़ीज़ी,,,,,,