ओड़िशा की धरती पर दुर्ग की बिटिया अविका वार्ष्णेय ने रचा इतिहास

दुर्ग (छत्तीसगढ़): कृष्ण प्रिया कथक केंद्र, दुर्ग की होनहार शिष्या अविका वार्ष्णेय ने ओड़िशा की सांस्कृतिक राजधानी कटक में आयोजित प्रतिष्ठित नृत्य समारोह में अपनी अद्भुत प्रस्तुति से इतिहास रच दिया है। नन्ही उम्र से अपनी प्रतिभा का परिचय देती आ रही अविका ने इस बार अपनी भाव-भंगिमा और ताल-लय की सधी प्रस्तुति से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया और छत्तीसगढ़ का नाम राष्ट्रीय पटल पर गौरवपूर्ण ढंग से प्रस्तुत किया।

महज 6 वर्ष की उम्र से कथक साधना में निरंतर जुटी अविका ने AIDA, हिन्दुस्तानी कला महोत्सव और देशराग जैसे कई प्रतिष्ठित राष्ट्रीय खिताब अपने नाम किए हैं। वर्तमान में कक्षा 9वीं की छात्रा अविका पढ़ाई में भी उतनी ही दक्ष हैं, जितनी कथक में निपुण।

अविका अपनी इस सफलता का श्रेय अपनी मां के अथक परिश्रम और मार्गदर्शन को देती हैं, जिन्होंने बचपन में ही उनकी प्रतिभा को पहचाना और हर मोड़ पर उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। अविका का मानना है कि अगर मां का समर्थन न होता, तो शायद वह आज इस ऊंचाई तक नहीं पहुंच पातीं।

उनकी साधना और सफलता के पीछे एक और महत्वपूर्ण स्तंभ हैं — उपासना तिवारी, जो कृष्ण प्रिया कथक केंद्र की संस्थापिका हैं। उन्होंने न केवल अविका को नृत्य की बारीकियां सिखाईं, बल्कि मंच पर आत्मविश्वास से प्रस्तुत होने का आत्मबल भी प्रदान किया। उपासना जी के सान्निध्य में अविका जैसी अनेक प्रतिभाएं संस्कारित हो रही हैं।

अविका के परिवार में शिक्षा और सेवा की समृद्ध परंपरा है। उनके बाबा डॉ. एच.आर. वार्ष्णेय, एक वरिष्ठ चिकित्सक हैं और अविका की प्रेरणा के स्रोत भी। अविका भी भविष्य में डॉक्टर बनकर अपने बाबा के पदचिह्नों पर चलना चाहती हैं और चिकित्सा सेवा में योगदान देना चाहती हैं।

नृत्य और शिक्षा – दोनों में संतुलन बनाए रखकर अविका आज की युवा पीढ़ी के लिए एक जीवंत प्रेरणा बन चुकी हैं।

छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक प्रतिभाओं का यह उज्ज्वल चेहरा निश्चित ही आने वाले समय में देश और विश्व मंचों पर अपनी प्रतिभा की चमक बिखेरेगा।