[: 📚 ओ३म् 📚
🪷 *पावन गायत्री कथा*🪷
आर्यावर्त्त साधना सदन पटेल नगर दशहराबाग बाराबंकी के तत्वाधान में चल रहे गायत्री आध्यात्मिक साधना के क्रम में आज चतुर्थ दिवस के अवसर पर बताया गया कि *गायत्री मूर्ति नहीं मंत्र* है।मंत्र से आहुति एवं ध्यान किया जाता है पूजा नहीं।पूजा हमेशा साकार पदार्थों की होती है जबकि गायत्री मंत्र में जिस ईश्वर का ध्यान किया वो निराकार है।निराकार ईश्वर का *हृदय में ध्यान* किया जाता है।
ध्यान से पूर्व कुछ तैयारियां की जाती हैं जो इस प्रकार से हैं।
[१] *संकल्प* हे ईश्वर! अब मैं आपका ध्यान करने जा रहा हूं।अब मैं अपने मन को बाहर नहीं जाने दुंगा!
[२] *ईश्वर एक है* जिस तरह साईकिल,मोटर साईकिल,कार,रेल में यात्री अनेक होते हैं मगर *चालक एक* ही होता है।इसी प्रकार विविधताओं से भरे इस ब्रह्माण्ड का *संचालक ईश्वर भी एक* ही है।
[३] *ईश्वर सर्वव्यापक है* ईश्वर सृष्टि के कण-कण में रहता है।सबके अंदर-बाहर,आगे-पीछे,दाएं-बाएं और ऊपर-नीचे रहता है।अज्ञानता के कारण लोगों ने *मंदिर,मस्जिद,गुरुद्वारे,चर्च आदि को ईश्वर का घर* बना रखा है।इसीलिए लोग आपस में लड़ते-झगड़ते हैं।जिस लोग सारी धरती को ईश्वर का घर व एक ईश्वर को मानने लगेंगे उसी दिन *आतंकवाद,नस्लवाद,जातिवाद,सम्प्रदायवाद समाप्त व मानवतावाद* जाग उठेगा।
[४] *ईश्वर निराकार* है।जिस प्रकार आत्मा अजर,अमर,अभय निराकार है उसी तरह परमात्मा भी निराकार है।महाभारत काल यानि आज से *पांच हजार (५०००) वर्ष पूर्व* संपूर्ण भू-मंडल पर एक निराकार ईश्वर *ओ३म् की उपासना* होती थी।जिसके प्रमाण आज भी मोजूद है।
मुसलमाना नमाज के बाद आमीन,ईसाई प्रार्थना के बाद अमीन,सरदार लोग एक ओंकार और हिंदू हरि:ओ३म,ओ३म् नम:शिवाय कहते हैं।इस प्रकार *आमीन,अमीन,ओंकार,ओ३म* से सब *ओंकार एक निराकार ईश्वर* की ओर ही संकेत करते हैं।
ये उपरोक्त वाक्यों का उच्चारण ध्यान से पूर्व किया जाता है जिससे मन ध्यान में भटके नहीं।ध्यान की और भी कुछ तैयारियां हैं उसकी चर्चा कल के *पावन गायत्री कथा* के समय करेंगे!
🪔 *आज के भजन*🪔
आज माता सरोज,सरस्वती देवी,अर्जुन देव ने वैदिक भजन गाकर भक्ति रस का पान कराया है। इस गायत्री कथा को आप हमारे यू टूयूब चैनल 🪔अक्षर ओ३म्🪔 पर भी सुन सकते हैं!
आचार्य सुरेश जोशी
वैदिक प्रवक्ता आर्यावर्त्त साधना सदन पटेल नगर दशहरा बाग उत्तर प्रदेश।
🪷 *ओ३म्*🪷
ईश्वर न्यायकारी कैंसे है?इसे समझने के लिए इस प्रवचन को अवश्य सुनें!